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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
किनारे पर स्थित अभीष्ट नगर की प्राप्ति नहीं होती। इसी तरह संसार रूपी समुद्र से पार होने के लिए पुण्य रूपी नौका की आवश्यकता है। किन्तु चौदहवें गुणस्थान में पहुँचने के पश्चात् मोक्ष रूपी नगर की प्राप्ति के समय पुण्य हेय हो जाता है। ६३४- काल के नौ भेद ___ जो द्रव्यों को नई नई पर्यायों में बदले उसे काल कहते हैं। इसके नौ भेद हैं(१) द्रव्यकाल-- वर्तना अर्थात् नये को पुराना करने वाला काल द्रव्यकाल कहा जाता है। (२) अद्धाकाल-- अढाई द्वीप में सूर्य और चन्द्र की गति से निश्चित होने वाला काल अद्धाकाल है। (३) यथायुष्क काल- देव आदि की आयुष्य के काल को यथायुष्क काल कहते हैं। (४) उपक्रमकाल- इच्छित वस्तु को दूर से समीप लाने में लगने वाला समय उपक्रम काल है। (५) देशकाल- इष्ट वस्तु की प्राप्ति होना रूप अवसर रूपी काल देशकाल है। (६) मरणकाल- मृत्यु होना रूप काल मरणकाल है अर्थात मृत्यु अर्थ वाले काल को मरण काल कहते हैं। (७) प्रमाणकाल- दिन, रात्रि, मुहूर्त वगैरह किसी प्रमाणसे निश्चित होने वाला काल प्रमाणकाल है। • (८) वर्णकाल- काले रंग को वर्णकाल कहते हैं अर्थात् वह वर्ण की अपेक्षा काल है। (8)भावकाल-औदयिक,क्षायिक,क्षायोपशमिक, औपशमिक
और पारिणामिक भावों के सादि सान्त आदि भेदों वाले काल कोभावकाल कहते हैं। (विशेषावश्यक भाष्य गाथा २०३०)