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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
पाङ्ग, आहारक अङ्गोपाङ्ग) बन्धन ५ ( औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस, कार्मण बन्धन) संघात ५ ( औदारिक, वैक्रियक,
हारक, तैजस, कार्मण संघात) संस्थान ६ ( समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमण्डल, सादि (स्वाति), कुब्जक, वामन, हुएडक) संहनन ६ (वज्रऋषभनाराच, ऋषभ नाराच, नाराच, अर्द्धनाराच कीलक, सेवा) व ५ (कृष्ण, नील, पीत, रक्त, श्वेत) गन्ध २ (सुगन्ध, दुर्गन्ध) रस ५ (खट्टा मीठा, कडुवा, कषायला, तीखा) स्पर्श = ( हल्का, भारी, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, मृदु, (कोमल), कठोर) । श्रानुपूर्वी ४ ( नरकानुपूर्वी, तिर्यश्चानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी, देवानुपूर्वी) । उपरोक्त ६३ प्रकृतियाँ और नीचे लिखी ३० प्रकृतियाँ - कुल ६३ होती हैं। अगुरुलघु, उपघात, पराघात, आतप, उद्योत, शुभविहायोगति, अशुभविहायोगति, उच्छ्वास, त्रस, स्थावर, चादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, स्थिर अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुखर, दुःखर, आदेय, अनादेय, यशःकीर्ति, अयशः कीर्ति, निर्माण, तीर्थङ्करं नामकर्म ।
गोत्र कर्म की दो प्रकृतियाँ- उच्च गोत्र और नीच गोत्र ।
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अन्तराय कर्म की पाँच प्रकृतियाँ- दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्य्यान्तराय । आठों कर्मों की कुल मिलाकर १४८ प्रकृतियाँ हुई ।
(पनवणण पद २३, सूत्र २६३ ) ( समवायांग ४२ )
मोक्ष तत्व के भेद
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ये चारों मोक्ष का मार्ग हैं | मोक्ष तत्त्व का विचार नौ द्वारों से भी किया जाता है। वे द्वार ये हैं।
संतपय परूवणया, दव्व पमाणं च वित्त फुसण्या । कालो अ अंतर भाग, भावे अप्पा बहु चेव ॥
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