________________
मो जैनसिद्धान्त बोल संग्रह
१९७
बन्ध तत्त्व के ४ भेद (१) प्रकृतिबन्ध, (२) स्थितिबन्ध (३) अनुभागबन्ध, (४) प्रदेशबन्ध । प्रकृतिबन्ध की ज्ञानावरणीयादि आठ मूल प्रकृतियाँ हैं। उत्तर प्रकृतियाँ १४८ नीचे लिखे अनुसार हैं
ज्ञानावरणीय की ५ प्रकृतियाँ- मतिज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय, मनःपर्ययज्ञानावरणीय, केवलज्ञानावरणीय।
दर्शनावरणीय की प्रकृतियाँ-दर्शन ४, चक्षु दर्शनावरणीय, अचक्षु दर्शनावरणीय, अवधि दर्शनावरणीय, केवल दर्शनाचरणीय । निद्रा ५-निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलामचला और स्त्यानगृद्धि। वेदनीय की दो प्रकृतियाँ-साता वेदनीय, असाता वेदनीय।
मोहनीय कर्मकी २८ प्रकृतियाँ-दर्शन मोहनीय के ३ भेद-- मिथ्यात्व मोहनीय, सम्यक्त्व मोहनीय और मिश्र (सम्यग्मिथ्यात्व) मोहनीय । चारित्र मोहनीय के २५ भेद- कषाय मोहनीय के सोलह- अनन्तानुबन्धी क्रोध,मान, माया, लोभ। अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया, लोभ । प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया, लोभ।संजालन क्रोध, मान, माया, लोभ। नोकषाय के ह भेद - हास्य ,रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद। ___ आयु कर्म की ४ प्रकृतियाँ- नरकायु, तिर्यश्चायु, मनुष्यायु
और देवायु। __नामफर्म की ६३ प्रकृतियाँ-गति ४ (नरकगति, तिर्यश्च गति, मनुष्यगति, देवगति) जाति ५ (एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय) शरीर ५ (ौदारिक, वैक्रियक, आहारक, तेजस, कार्मण) मझोपा ३ (ौदारिक अनोपान, वैक्रिय अशो