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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
प्रसन्न दोष, बहु दोष (बहुल दोष), अज्ञान दोष (नाना दोष) और आमरणान्त दोष ।
धर्मध्यान के चार प्रकार - आज्ञा विचय, अपाय विचय, विपाक विचय, संस्थान विचय । धर्मध्यान के चार लिङ्ग (लक्षण) - आज्ञा रुचि, निसर्ग रुचि, सूत्र रुचि, अवगाढ रुचि (उपदेश रुचि) । धर्मध्यान के चार आलम्बन- वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा । धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं - अनित्यानुप्रेक्षा, अशरणानुप्रेक्षा, एकत्वानुप्रेक्षा, संसारानुप्रेक्षा ।
शुक्लध्यान के चार प्रकार -- पृथक्त्वं वितर्क सविचारी, एकत्व वितर्क विचारी, सूक्ष्म क्रिया अनिवर्ती, समुच्छिन्न क्रिया अमतिपाती । शुक्लध्यान के चार लिङ्ग (लक्षण) - विवेक, व्युत्सर्ग, अव्यथ, सम्मोह । शुक्लध्यान के चार आलम्बन - क्षमा, मुक्ति, आर्जव, मार्दव । शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं - अपायानुपेक्षा, अशुभानुप्रेक्षा, अनन्तवर्तितानुप्रेक्षा, विपरिणामानुप्रेक्षा ।
इन सब की व्याख्या इसके प्रथम भाग बोल नं० २१५ से २२८ तक में दे दी गई है।
व्युस्सर्ग के भेद
व्युत्सर्ग के दो भेद - द्रव्य व्युत्सर्ग और भाव व्युत्सर्ग। द्रव्यन्युत्सर्ग के चार भेद - शरीर व्युत्सर्ग, गण व्युत्सर्ग, उपधि व्युत्सर्ग, और भक्तपान व्युत्सर्ग।
ara area के तीन भेद - कषाय व्युत्सर्ग, संसार व्युत्सर्ग, कर्म व्युत्सर्ग। कषाय व्युत्सर्ग के चार भेद-क्रोध, मान, माया और लोभ व्युत्सर्ग। संसार व्युत्सर्ग के चार भेद- नैरयिक संसार व्युत्सर्ग, तिर्यश्च संसार व्युत्सर्ग, मनुष्य संसार व्युत्सर्ग, देव संसार व्युत्सर्ग। कर्म व्युत्सर्ग के आठ भेद - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तरायं कर्म व्युत्सर्ग।