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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
संत सुद्धपयन्त्ता, विजतं खकुसुमव्व न असंतं । मुक्खति पर्य तस्स उ, परूवणा मग्गण । इहिं || सत्पद प्ररूपणा - मोक्ष सत्स्वरूप है क्योंकि मोक्ष शुद्ध एवं एक पद है। संसार में जितने भी एक पद वाले पदार्थ हैं वे सब सत्स्वरूप हैं, यथा घट पट आदि । दो पद वाले पदार्थ सत् एवं असत् दोनों तरह के हो सकते हैं, यथा खरशृङ्ग (गदहे के सींग) और बन्ध्यापुत्र आदि पदार्थ असत् हैं किन्तु गोशृङ्ग, मैत्रतनय, राजपुत्र आदि पदार्थ सत् स्वरूप हैं । मोक्ष एक पद वाच्य होने से सत्स्वरूप है किन्तु आकाशकुसुम (आकाश के फूल) की तरह अविद्यमान नहीं है ।
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सत्पद प्ररूपणा द्वार का निम्न लिखित चौदह मार्गणाओं के द्वारा भी वर्णन किया जा सकता है। यथा
गइ इंदिय काए, जोए वेए कसाय नाये य । संजम दंसण लेस्सा, भव सम्मे सन्नि आहारे ॥ गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व, संझी, और आहार । इन चौदह मार्गणाओं के अवान्तर भेद ६२ होते हैं। यथा- गति ४, इन्द्रिय ५, काया ६, योग ३, वेद ३, कषाय ४, ज्ञान ८ (५ ज्ञान, ३ अज्ञान), संयम ७ (५सामायिकादि चारित्र, देशविरति और अविरति ) दर्शन ४, लेश्या ६, भव्य २ (भवसिद्धिक, अभत्र सिद्धिक), सम्यक्त्व के ६ (औपशमिक, सास्वादान, क्षायोपशमिक, क्षायिक, मिश्र और मिथ्यात्व), संज्ञी २ ( संज्ञी, असंज्ञी) आहारी २ (आहारी, अनाहारी) ।
इन १४ मार्गणाओं में से अर्थात् ६२ भेदों में से जिन जिन मार्गणाओं से जीव मोक्ष जा सकता है, उनके नाम-
मनुष्य गति, पंचेन्द्रिय जाति, त्रसकाय, भवसिद्धिक, संज्ञी,
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