________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
-
प्रायश्चित्त के ५० भेददस प्रकार का प्रायश्चित्त-(१)आलोयणारिहे (२) पडिक्कमणारिहे (३) तदुभयारिहे (४)विवेगारिहे(५) विउस्सग्गारिहे . (६) तवारिहे (७) छेदारिहे (८) मूलारिहे (8) अणवट्टप्पारिहे (१०) पारंचियारिहे।
प्रायश्चित्त देने वाले के दस गुण-(१)प्राचारवान् (२)आधारवान् (३)व्यवहारवान् (४) अपनीडक (५) प्रकुर्वक (६) अपरिसावी (७)नियोपक (८)अपायदर्शी (६)प्रियधमा(१०) दृढधर्मा।
प्रायश्चित्त लेने वाले के दस गुण-(१) जातिसम्पन्न (२) कुलसम्पन्न (३) विनयसम्पन्न (४) ज्ञानसम्पन्न (५) दर्शनसम्पन्न (६) चारित्रसम्पन्न (७) क्षमावान् (८) दान्त (E)अमायी (१०) अपश्चात्तापी।
प्रायश्चित के दसदोष-(१) आकम्पयित्ता (२) अणुमाणइत्ता (३) दिहं (४) बायरं (५) मुहुमं (६) छन्नं (७) सद्दाउलयं (८) बहुजण (६) अव्वत्त (१०) तस्सेवी। ...दोष प्रतिसेवना के दस कारण-(१)दपे(२) प्रमाद (३)अणाभोग (४)आतुर (५)आपत्ति (६)संकीणे (७) सहसाकार (८) भय (8) प्रद्वेष (१०)विमर्श। इन सब की व्याख्या दसवें बोल संग्रह में है। •
(भगवती शतक २५ उद्देशा ७ ) . विनय के भेद विनय के मूल भेद सात हैं-ज्ञान विनय, दर्शन विनय, चारित्र विनय, मन विनय, वचन विनय, काय विनय और लोकोपचार विनय । इन सातों के अवान्तर भेद १३४ होते हैं, यथाज्ञान विनय के ५ भेद-मतिज्ञान विनय, श्रुतज्ञान विनय, अवधि ज्ञान विनय, मनःपर्ययज्ञान विनय, केवलज्ञान विनय । दर्शन विनय के दो भेद-शुश्रूषा विनय और अनाशातना विनय ।