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________________ १९२ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला ' की ओर सीधे लटका कर खड़े रहना और आतापना लेना ) एकपादिका - एक पैर पर खड़े रह कर आतापना लेना । सम्पादिका - दोनों पैरों को बराबर रख कर आतापना लेना । उपरोक्त निष्पन्न, अनिष्पन्न और ऊर्ध्वस्थित के तीनों भेदों के उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य के भेद से प्रत्येक के तीन तीन भेद और भी होजाते हैं । (१०) अवाउंडर (अप्राकृतक ) - खुले मैदान में आतापना लेना । (११) अकण्डूयक- शरीर कोन खुजलाते हुए श्रातापना लेना । (१२) अनिष्ठीवक निष्ठीवन ( थूकना आदि ) न करते हुए आतापना लेना । 1 (१३) घुय के समंसुलोम (घुतकेशश्मश्रुलोम ) - दाढ़ी मूँछ आदि के केशों को न संवारते हुए अर्थात् अपने शरीर की विभूषा को छोड़कर प्रतापना लेना । प्रतिसंलीनता के १३ भेद इन्द्रिय प्रतिसंलीनता के ५ भेद- श्रोत्रेन्द्रिय विषय प्रचार निरोध अथवा श्रोत्रेन्द्रिय प्राप्त ग्रंथों में राग द्वेष का निरोध । इसी : तरह शेष चारों इन्द्रियों के विषयप्रचार निरोध । कषाय प्रतिसंलीनता के चार भेद- क्रोधोदय निरोध, अथवा उदयप्राप्त क्रोध का विफलोकर। इसी तरह मान, माया और लोभ के उदय का निरोध करना या उदयमाप्त का विफल करना । (६) योग प्रतिसंलीनता के तीन भेद - मनोयोग प्रतिसंलीनता, वचनयोग प्रतिसंलीनता, काययोग प्रतिसंलीनता ( १२ ) । (१३) विविक्त शयनासनता (स्त्री, पशु, नपुंसक से रहित स्थान में रहना) । आभ्यन्तर तप के छः भेद प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, व्युत्सर्ग ।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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