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श्री सेठिया जैनप्रन्थमाला
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शुश्रूषा विनय के दस भेद-अन्भुटाणे (अभ्युत्थान) आसणाभिग्गहे (आसनाभिग्रह), आसणप्पदाणे(आसनप्रदान),सक्कारे (सत्कार), सम्माणे (सन्मान),कीइकम्मे (कीर्तिकर्म),अंजलिपग्गहे , (अंजलिपग्रह), अनुगच्छणया (अनुगमनता), पज्जुवासणया (पर्युपासनता) पडिसंसाहणा (पतिसंसाधनता)। अनाशातना विनय के ४५ भेद
अरिहन्त भगवान् ,अरिहन्त प्ररूपित धर्म,आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, कुल, गण, संघ, सांभोगिक, क्रियावान् , मतिज्ञानवान्, श्रुतज्ञानवान् , अवधिज्ञानवान्, मनःपर्यय ज्ञानवान् , केवलज्ञानवान् , इन १५ की आशातना न करना अर्थात् विनय करना, भक्ति करना और गुणग्राम करना । इन तीन कार्यों के करने से ४५ भेद हो जाते हैं । चारित्र विनय के ५ भेद- सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय, यथाख्यात चारित्र, इन पाँचों चारित्रधारियों का विनय करना । मन विनय के दो भेद-प्रशस्त मन विनय और अप्रशस्त मन विनय । अप्रशस्त मन विनय के १२ भेद- सावध, सक्रिय, सकर्कश, कटुक, निष्ठुर, फरुस (कठोर),प्रावकारी, छेदकारी, भेदकारी, परितापनाकारी, उपद्रवकारी, भूतोपघातकारी। उपरोक्त १२ भेदों से विपरीत प्रशस्त मन विनय के भी १२ भेद होते हैं। वचन विनय के दो भेद-प्रशस्त और अप्रशस्त । इन दोनों के भी मन विनय की तरह २४ भेद होते हैं । काय विनय के दो भेदप्रशस्त और अप्रशस्त।प्रशस्त काय विनय के सात भेद-सावधानी से गमन करना, ठहरना,बैठना, सोना, उल्लंघन करना, बार बार उल्लंघन करना और सभी इन्द्रिय तथा योगों की प्रवृत्ति करना मशस्त काय विनय कहलाता है। अप्रशस्त काय विनय के सात भेद-उपरोक्त सात स्थानों में असावधानता रखना।