SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह मनुष्य के ३०३ भेद कर्मभूमिज मनुष्य के १५ अर्थात् ५ भरत, ५ ऐरावत और ५ महाविदेह में उत्पन्न मनुष्यों के १५ भेद । अकर्मभूमिज (भोगभूमिज) मनुष्य के ३० भेद अर्थात् ५ देवकुरु, ५ उत्तरकुरु, ५ हरिवास, ५ रम्यकवास, ५ हैमवत, और ५ हैरण्यवत क्षेत्रों में उत्पन्न मनुष्यों के ३० भेद । ५६ अन्तरद्वीपों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के ५६ - भेद । ये सब मिलाकर गर्भज मनुष्य के १०१ भेद होते हैं। इनके पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से २०२ भेद होते हैं और सम्मूमि मनुष्य के १०१ भेद । कुल मिलाकर मनुष्य के ३०३ भेद होते हैं । कर्मभूमिज आदि का स्वरूप इसके प्रथम भाग बोल नं० ७२ में दे दिया गया है। देवता के १६८ भेद भवनपति के १० अर्थात् असुर कुमार, नाग कुमार, सुवर्ण कुमार, विद्युत् कुमार, अभि कुमार, उदधि कुमार, द्वीप कुमार, दिशा कुमार, पवन कुमार और स्तनित कुमार । . १७९ परमधार्मिक देवों के १५ भेद- अम्ब, अम्बरीष, श्याम, शक्ल, रौद्र, महारौद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनुष, कुम्भ, वालुका, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष । वाणव्यन्तर के २६ भेद अर्थात् पिशाचादि ८ ( पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व) । आपन्ने आदि आठ (आपने, पाणपत्रे, इसिवाई, भूयवाई, कन्दे, महाकन्दे, कूलण्डे, पयंगदेवे ) । जृम्भक दस (अन्न जृम्भक, पानजृम्भक लयन जृम्भक, शयन जृम्भक, वस्त्र जृम्भक, फल जृम्भक, पुष्प जृम्भक, फलपुष्प जृम्भक, विद्या जृम्भक, अग्नि जृम्भक ) । ज्योतिषी देवों के ५ भेद- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा। इनके चर (अस्थिर) अचर (स्थिर) के भेद से दस भेद हो जाते
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy