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श्री सेठिया जैनप्रन्धमाला
हैं। इनका विशेष स्वरूप इसके प्रथम भाग पाँचवाँ बोल संग्रह बोल नं. ३६६ में दे दिया गया है।
वैमानिक देवों के कल्पोपपत्र और कल्पातीत दो भेद हैं। इनमें कल्पोपपन्न के सौधर्म, ईशान आदि १२ भेद होते हैं। ____ कल्पातीत के दो भेद- अवयक और अनुत्तर वैमानिक । भद्र, सुभद्र, सुजात, सुमनस, सुदर्शन, प्रियदर्शन, आमोह, सुपतिबर, यशोधर ये ग्रैवेयक के नौ भेद हैं और विजय, वैजयन्त आदि के भेद से अनुत्तर वैमानिक के ५ भेद हैं।
तीन किल्विषिक देव- (१) त्रैपल्योपमिक (२) सागरिक और (३) त्रयोदश सागरिक। इनकी स्थिति क्रमशः तीन पल्योपम, तीन सागर और तेरह सागर की होती है। इनकी स्थिति के अनुसार ही इनके नाम हैं । समानाकार में स्थित प्रथम और दूसरे देवलोक के नीचे त्रैपल्योपमिक, तीसरे और चौथे देवलोक के नीचे त्रैसागरिक और छठे देवलोक के नीचे त्रयोदश सागरिक किल्विषिक देव रहते हैं।
लौकान्तिक देवों के नौ भेद- सारस्वत, आदित्य, बहि, वरुण, गर्दतोयक, तुपित, अव्यावाध, आग्नेय और अरिष्ट ।
इस प्रकार १० भवनपति, १५ परमाधार्मिक,१६ वाणव्यन्तर, । १० जम्भक, १० ज्योतिषी, १२ वैमानिक, ३ किल्विपिक,
ह लौकान्तिक, ह वेयक, ५ अनुत्तर वैमानिक, कुल मिलाकर १६ भेद हुए। इनके पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से देवता के १६८ भेद होते हैं। ... नारकी के १४, तिर्यश्च के ४८, मनुष्य के ३०३ और देवता के १६८ भेद, कुल मिलाकर जीव के ५६३ भेद हुए।
(पनवणा पद १) ( जीवाभिगम ) (उत्तराध्ययन अध्ययन ३६ )