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श्री सेठिया जैन अन्धमाला
__(8) मोक्ष- सम्पूर्ण कर्मों का नाश हो जाने पर आत्मा का अपने स्वरूप में लीन हो जाना मोक्ष है। (ठाणांग, सूत्र ६६५ ).
तत्त्वों के प्रवान्तर भेद उपरोक्त नव तत्त्वों में जीव तत्त्व के ५६३ भेद हैं। वे इस प्रकार हैं- नारकी के १४, तिर्यश्च के ४८, मनुष्य के ३०३ और देवता के १६८ भेद हैं।
नारकी जीवों के १४ भेद रत्नप्रभा, शर्करामभा, वालुकाप्रमा, पंकप्रभा, धूममभा, तमःप्रभा और तमस्तमःमभायेसात नरकों के गोत्र तथा घम्मा, वंसा, शीला, अञ्जना, अरिष्ठा, मघा और माघवती ये सात नरकों के नाम हैं। इन सात में रहने वाले जीवों के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से नारकी जीवों के १४ भेद होते हैं। इनका विस्तार द्वितीय भाग सातवें बोल संग्रह के बोल नं० ५६० में दिया है।
तिर्यश्च के ४८ भेद पृथ्वीकाय, अकाय, तेउकाय और वायुकाय के सूक्ष्म, बादर पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से प्रत्येक के चार चार भेद होते हैं। इस प्रकार १६ भेद हुए। वनस्पतिकाय के सूक्ष्म, प्रत्येक और साधारण तीन भेद होते हैं। इन तीनों के पर्याप्त और अपर्याप्त ये छः भेद होते हैं। कुल मिला कर एकेन्द्रिय के २२ भेद हुए। - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से ६ भेद होते हैं। - तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय के बीस भेद- जलचर, स्थलचर, खेचर उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प इनके संझी असंझी के भेद से दस भेद होते हैं। इन दस के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से बीस भेद हो जाते हैं। एकेन्द्रिय के २२, विकलेन्द्रिय के ६ और तिर्यश्च पंचेन्द्रिय के २०, कुल मिलाकर तिर्यश्च के ४८ भेद होते हैं।