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श्री जैम सिद्धान्त बोल संग्रह
होने वाला शुभ बन्ध। . (६) नमस्कारपुण्य- नमस्कार से होने वाला पुण्य ।
( ठाणांग ६, सूत्र ६७६ ६२८- ब्रह्मचर्यगुप्ति नौ ___ ब्रह्म अर्थात् आत्मा में चर्या अर्थात लीन होने को ब्रह्मचर्य कहते हैं। सांसारिक विषयवासनाएं जीव को आत्मचिन्तन से हटा कर बाह्य विषयों की ओर खींचती हैं। उनसे बचने का नाम ब्रह्मचर्यगुप्ति है, अथवा वीर्य के धारण और रक्षण को ब्रह्मचर्य कहते हैं। शारीरिक और आध्यात्मिक सभी शक्तियों का आधार वीर्य है। वीर्य रहित पुरुष लौकिक या आध्यात्मिक किसी भी तरह की सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए नौ बातें आवश्यक हैं। इनके बिना ब्रह्मचर्य का पालन नहीं हो सकता । वे इस प्रकार हैं(१) ब्रह्मचारी को स्त्री, पशु और नपुंसकों से अलग स्थान में रहना चाहिए । जिस स्थान में देवी, मानुषी या तिर्यञ्च का वास हो, वहाँ न रहे। उनके पास रहने से विकार होने का डर है। (२) स्त्रियों की कथा वार्ता न करे। अर्थात् अमुक स्त्री सुन्दर है या अमुक देशवाली ऐसी होती हैं, इत्यादि बातें न करे। (३) स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठे, उनके उठ जाने पर भी एक मुहूर्त तक उस आसन पर न बैठे अथवा स्त्रियों में अधिक न आवे जावे । उनसे सम्पर्क न रक्खे। .. (४) स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अङ्गों को न देखे । यदि अकस्मात् दृष्टि पड़ जाय तो उनका ध्यान न करे और शीघ्र ही उन्हें भूल जाय । (५) जिसमें घी वगैरह टपक रहा हो ऐसा पंक्वान या गरिष्ठ भोजन न करे, क्योंकि गरिष्ठ भोजन विकार उत्पन्न करता है।
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