________________
श्री सेठिया जैन अन्नमाला
(६) रूखा मूखा भोजन भी अधिक न करे ।भाधा पेट अन्न से भरे, प्राधे में से दो हिस्से पानी से तथा एक हिस्सा हवा के लिए छोड़ दे। इससे मन स्वस्थ रहता है। (७) पहिले भोगे हुए भोगों का स्मरण न करे। (८) त्रियों के शब्द, रूप या ख्याति (वर्णन) वगैरह पर ध्यान न दे, क्योंकि इन से चित्त में चञ्चलता पैदा होती है । (६) पुण्योदय के कारण प्राप्त हुए अनुकूल वणे, गन्ध, रस, • स्पर्श वगैरह के सुखों में आसक्त न हो। - इन बातों का पालन करने से ब्रह्मचर्य की रक्षा की जा सकती है। इनके विपरीत ब्रह्मचर्य की नौ अगुप्तियाँ हैं।
(ठाणांग, सूत्र ६६३ ) ( समवायांग, ६ ) नोट- उत्तराध्ययन सूत्र के सोलहवें अध्ययन में ब्रह्मचर्य के दस समाधि स्थान कहे गए हैं। वे दृष्टान्तों के साथ दसवें बोल संग्रह में दिए जायेंगे। ६२६- निव्विगई पच्चक्खाण के नौ आगार
विकार उत्पन्न करने वाली वस्तुओं को 'विकृति' कहते हैं। विकृतियाँ भक्ष्य और अभक्ष्य दो प्रकार की हैं। दूध, दही, घी, तेल, गुड़ और पक्वान ये भक्ष्य विकृतियाँ हैं। मांसादि अभक्ष्य विकृतियाँ हैं। अभक्ष्य का तो श्रावक को त्याग होता ही है। भक्ष्य विकृतियाँ छोड़ने को निम्चिगई पञ्चकखाण कहते हैं। इसमें नौ भागार होते हैं। (१) अणाभोगेणं (२) सहसागारेणं (३) लेवालेवेणं (४) : गिहत्यसंसहेणं (५) उक्वित्तविवेगेणं (६) पडुच्चमक्खिएणं (७) परिहावणियागारेणं () महत्तरागारेणं (६) सव्वसमाहिवत्तियागारेणं।
इनमें से आठ आगारों का स्वरूप आठवें बोल संग्रह बोलन.