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भी जैन सिद्धान्त बोल संपह
धर्माचार्य भगवान महावीर को ज्वर हो रहा है। दूसरे लोग कहेंगे, भगवान् महावीर को गोशालक ने अपने तेज से अभिभूत कर दिया। इसलिए आयु पूरी होने के पहले ही काल कर गए। इस प्रकार की भावना से उसके हृदय में दुःख हुआ। एक वन में जाकर जोर जोर से रोने लगा । भगवान् ने दूसरे स्थविरो के द्वारा उसे बुला कर कहा-सिंह! तुमने जो कल्पना की है वह नहीं होगी । मैं कुछ कम सोलह वर्ष की कैवल्य पर्याय को पूरा करूँगा। __नगर में रेवती नाम की गाथापनी (गृहपत्नी) ने दो पाक तैयार किए हैं। उनमें कूष्माण्ड अर्थात् कोहलापाक मेरे लिए तैयार किया है । उसे मत लाना । वह अकल्पनीय है। दूसरा विजौरा पाक घोड़ों की वायु दूर करने के लिए तैयार किया है। उसे ले पात्रो।
रेवती ने बहुमान के साथ आत्मा को कृतार्थ समझते हुए बिजौरा पाक मुनि को बहरा दिया । मुनि ने लाकर भगवान को दिया । उसके खाने से रोग दूर हो गया। सभी मुनि तथा देव प्रसन्न हुए। रेवती ने तीर्थङ्कर गोत्र बाँधा।
(ठाणांग ६, सूत्र ६१) ६२५- भगवान महावीर के नौ गण
जिन साधुओं की क्रिया और वाचना एक सरीखी हो उन्हें गण कहते हैं । भगवान् महावीर के नौ गण थे(१) गोदास गण-गोदास भद्रबाहु स्वामी के प्रथम शिष्य थे। इन्हीं के नाम से पहला गण प्रचलित हुआ। (२) उत्तरबलिस्सह गण- उत्तरबलिस्सह स्थविर महागिरि के प्रथम शिष्य थे। इनके नाम से भगवान् महावीर का दूसरा गण प्रचलित हुआ। (३) उद्देह गण (४) चारण गण (५) उद्दवाति गण (६) विस्स