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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
एक दिन स्वर्ग में इन्द्र द्वारा सुलसा के दृढ़ सम्यक्त्व की प्रशंसा सुन कर एक देव ने परीक्षा लेने की ठानी। साधु का रूप बना कर सुलसा के घर आया। सुलसा ने कहा- पधारिये महाराज ! क्या आज्ञा है ? देव बोला- तुम्हारे घर में लक्षपाक तेल है। मुझे किसी वैद्य ने बताया है, उसे दे दो। 'लाती हूँ' यह कह कर वह कोठार में गई। जैसे ही वह तेल को उतारने लगी देव ने अपने प्रभाव से बोतल (भाजन) फोड़ डाली । इसी प्रकार दूसरी और तीसरी बोतल भी फोड़ डाली । मुलसा वैसे ही शान्तचित्त खड़ी रही | देव उसकी दृढ़ता को देख कर प्रसन्न हुआ । उसने सुलसा को बत्तीस गोलियाँ दी और कहाएक एक खाने से तुम्हारे बत्तीस पुत्र होंगे। कोई दूसरा काम पड़े तो मुझे अवश्य याद करना। मैं उपस्थित हो जाऊँगा । यह
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कह कर वह चला गया ।
' इन सभी से मुझे एक ही पुत्र हो' यह सोच कर उसने सभी गोलियाँ एक साथ खाली । उसके पेट में बत्तीस पुत्र आगये और कष्ट होने लगा । देव का ध्यान किया । देव ने उन पुत्रों को लक्षण के रूप में बदल दिया । यथासमय सुलसा के बत्तीस लक्षणों वाला पुत्र उत्पन्न हुआ ।
किसी आचार्य का मत है कि ३२ पुत्र उत्पन्न हुए थे । (६) रेवती - भगवान् महावीर को औषध देने वाली ।
विहार करते हुए भगवान् महावीर एक बार मेटिक नाम के गाँव में आए। वहाँ उन्हें पित्तज्वर होगया । सारा शरीर जलने लगा । आम पड़ने लगे। लोग कहने लगे, गोशालक ने अपने तप के तेज से महावीर का शरीर जला डाला । छः महीने के अन्दर इनका देहान्त हो जायगा। वहीं पर सिंह नाम का मुनि रहता था । प्रतापना के बाद वह सोचने लगा, मेरे