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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
तत्त्वों के जानकार श्रमणोपासक सुदृष्टि (सुदर्शन) जागरिका . किया करते हैं। ___ इसके बाद शंख श्रमणोपासक ने भगवान् महावीर से क्रोध
आदि चारों कषायों के फल पूछे । भगवान् ने फरमाया-- क्रोध करने से जीव लम्बे काल के लिए अशुभ गति का बन्ध करता है । कठोर तथा चिकने कर्म बांधता है। इसी प्रकार मान, माया और लोभ से भी भयङ्कर दुर्गति का बन्ध होता है। भगवान् से क्रोध के तीव्र तथा कटुफल को जानकर सभी श्रावक कर्मवन्ध से डरते हुए संसार से उद्विग्न होते हुए शंखजी के पास आए । बार बार उनसे क्षमा मांगी। इस प्रकार खमत खामणा करके वे सब अपने अपने घर चले गए।
श्री गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने फरमाया-शंग्व श्रावक मेरे पास चारित्र अङ्गीकार नहीं करेगा। वह बहुत वर्षों तक श्रावक के व्रतों का पालन करेगा । शीलवत, गुणव्रत, विरमणव्रत, पौषध, उपवास वगैरह विविध तपस्याओं को करता हुआ अपनी आत्मा को निर्मल बनाएगा । अन्त में एक मास का संथारा करके सौधर्म कल्प में चार पल्योपम की स्थिति वाला देव होगा। ___इसके बाद यथासमय तीर्थङ्कर के रूप में जन्म लेकर जगत्कल्याण करता हुआ सिद्ध होगा । ( भगवती श० १२ उ० १) (८) मुलसा- प्रसेनजित् राजा के नाग नामक सारथि की पत्नी। इसका चारित्र नीचे लिखे अनुसार है- एक दिन सुलसा का पति पुत्रप्राप्ति के लिए इन्द्र की आराधना कर रहा था। सुलसा ने यह देख कर कहा- दूसरा विवाह करलो। सारथि ने, 'मुझे तुम्हारा पुत्र ही चाहिए' यह कह कर उसकी बात अस्वीकार कर दी।