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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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वैशेषिक, मीमांसा, वेदान्त आदि ग्रहों की प्रभा को नष्ट करने वाले, जैसे सूर्योदय होते ही सभी ग्रह और नक्षत्रों की प्रभा फीकी पड़ जाती है, इसी तरह एक एक नय को पकड़ कर चमकने चाले परतीर्थिकों की प्रभा सभी नयों का समन्वय करके चलने वाले स्याद्वाद के उदय होते ही नष्ट हो जाती है । संघ का मुख्य सिद्धान्त स्याद्वाद या अनेकान्तवाद है, इसलिए यह भी परतीर्थिकों की प्रभाको नष्ट करने वाला है । तप का तेज ही जिस में प्रखर प्रभा है । ज्ञान ही जिस का प्रकाश है, ऐसे दम अर्थात् उपशम प्रधान संघ रूपी सूर्य की सदा जय हो । (७) सातवीं उपमा समुद्र से दी गई है
भई धिइवेलापरिगयस्स सज्झायजोगमगरस्स । अक्खोहस्स भगवो संघसमुदस्स रंदस्स ॥ मूल और उत्तर गुणों के विषय में प्रतिदिन बढ़ते हुए आत्मा के परिणाम को धृति कहते हैं। धृति रूपी ज्वार वाले, स्वाध्याय और शुभयोग रूपी मगरों वाले, परिषह और उपसों से कभी क्षुब्ध अर्थात् व्याकुल न होने वाले, सब तरह के ऐश्वर्य, रूप, यश, धर्म, प्रयत्न, लक्ष्मी, उद्यम आदि से युक्त तथा विस्तीर्ण संघरूपी समुद्र का कल्याण हो । कर्मों को विदारण करने कीशक्ति स्वाध्याय औरशुभयोग में ही है, इसलिए उन्हें मगरमच्छ कहा है। (८) आठवीं उपमा मेरु पर्वत से दी गई हैसम्मइंसवरवइरदढरूढगाढावगाढपेढस्स । धम्मवररयण मंडिअ चामीयरमेहलागस्स। नियभूसियकणयसिलायलुजलजलंतचित्तकूडस्स । नंदणवणमणहरसुरभिसीलगंधुदुमायस्स ॥ जीवदया सुंदर कंदरुद्दरियमुणिवर मइंदइन्नस्स । हेउसयधाउपगलंतरयणदित्तोसहिगुहस्स ॥