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________________ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला संघ रूपी पद्म के लिए श्रुतरत्न रूपी लम्बी नाल है । I पाँच महाव्रत रूप कर्णिकाएं अर्थात् शाखाएं हैं जिन पर कमल का पत्ता ठहरा रहता है । उत्तरगुण केसर अर्थात् कमलरज हैं, जिस तरह कमल का रज चारों तरफ बिखर कर सुगन्ध फैलाता है उसी तरह उत्तरगुण भी उन्हें धारण करने वाले की यश कीर्ति फैलाते हैं । जो सम्यक्त्व तथा अणुव्रतों को धारण करके उत्तरोत्तर विशेष गुणों को प्राप्त करने के लिए समाचारी को सुनते हैं वे श्रावक कहलाते हैं। संघ रूपी पद्म के श्रावक ही भ्रमर हैं। भ्रमर की तरह श्रावक भी प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा शास्त्ररस ग्रहण करते हैं । जिन्होंने चार घाती कर्मों का क्षय कर दिया है। ऐसे जिन रूपी सूर्य के द्वारा संघ रूपी कमल खिलता है। जिन भगवान् ही धर्म के रहस्य की देशना देकर संघ रूपी कमल का विकास करते हैं । छ: काया की रक्षा करने वाले तपस्वी, विशुद्धात्मा श्रमणों का समूह ही इसके सहस्र पत्र हैं। ऐसे श्री संघ रूपी कमल का कल्याण हो । 1 I . १५८ (५) पाँचवी उपमा चन्द्र से दी गई हैतवसंजममयलंडण अकिरियसहु महदुद्धरिस निचं । जय संघचंद ! निम्मल सम्मत्तविशुद्ध जोरहागा ॥ तप और संयम रूपी मृग लाञ्छन अर्थात् मृग के चिह्न वाले, जिनवचन पर श्रद्धा न करने वाले नास्तिक रूपी राहुओं द्वारा दुष्प्राप्य, निर्दोष सम्यक्त्व रूपी विशुद्ध प्रभा वाले हे संघचन्द्र ! तेरी सदा जय हो। परदर्शनरूपी तारों से तेरी प्रभा सदा अधिक रहे । (६) छठी उपमा सूर्य से दी गई हैपरतिस्थियगह पहना सगस्स तवतेयदित्तले सस्स । माणुज्जोयस्स जए भहं दम संघ सूरस्स ॥ एक एक नय को पकड़ कर चलने वाले, सांख्य, योग, न्याय,
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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