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मो जैनसिद्धान्त बोल संग्रह
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शुचि कही जाती है। कहा भी है
सत्यं शौचं तपः शौचं, शौचमिन्द्रियनिग्रहः। सर्वभूतदया शौचं, जलशौचं च पञ्चमम् ।। अर्थात्- सत्य, तप, इन्द्रियनिग्रह, सब प्राणियों की दया शुचि है और पाँचवी जल शुचि कही गई है। * उपरोक्त चार भाव शुचि हैं और जलशुचि द्रव्य शुचि है ! (५७) पूया (पूता-पूजा) पवित्र होने से पूता और भाव से देवपूजा रूप होने से अहिंसा पूजा कही जाती है ।
(५८)विमला (स्वच्छ) होने से विमला, (५६) दीप्ति रूप होने से पभासा (प्रभा), (६०) जीव को अति निर्मल बनाने वाली होने से णिम्मलतरा (निर्मलतरा) कही जाती है।
यथार्थ के प्रतिपादक होने से उपरोक्त साठ नाम अहिंसा भगवती (दया माता) के पर्यायवाची शब्द कहे जाते हैं ।
अहिंसा को आठ उपमाएं दी गई हैं-- (१) भयभीत प्राणियों के लिए जिस प्रकार शरणका आधार होता है, उसी प्रकार संसार के दुःखों से भयभीत प्राणियों के लिए अहिंसा आधारभूत है । (२) जिस प्रकार पक्षियों के गमन के लिए प्रकाश का आधार है उसी प्रकार भव्य जीवों को अहिंसा का आधार है। (३) प्यासे पुरुष को जैसे जल का आधार है उसी प्रकार भव्य जीव को अहिंसा का आधार है। (४) भूखे पुरुष को जैसे भोजन का आधार है उसी प्रकार भव्य जीव को अहिंसा का आधार है। (५) समुद्र में डूबते हुए प्राणी को जिस प्रकार जहाज या नौका का आधार है उसी प्रकार संसार रूपी समुद्र में चक्कर खाते हुए भव्य प्राणियों को अहिंसा का आधार है।