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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
रक्षा रूप होने से रक्षा, (३४) मोक्ष के अक्षय निवास को देने वाली होने से सिद्धावास, (३५) कर्मबन्ध को रोकने का उपाय रूप होने से अहिंसा अणासवो (अनाश्रव) कहलाती है। (३६) केवलीण ठाणं- अहिंसा केवली भगवान् का स्थान है अर्थात् केवली प्ररूपित धर्म का मुख्य आधार अहिंसा ही है। इसीलिए अहिंसा केवलीठाण कहलाती है। (३७) शिव अर्थात् मोक्ष का हेतु होने से सिव(शिवं),(३८)सम्यक प्रवृत्ति कराने वाली होने से समिति, (३६) चित्त की समाधि रूप होने से सील (शील), (४०) हिंसा से निवृत्ति कराने वाली होने से संजम (संयम), (४१) चारित्र का घर (आश्रय) होने से सीलपरिघर. (४२) नवीन कर्मों के बन्धको रोकने वाली होने से संवर, (४३) मन की अशुभ प्रवृत्तियों को रोकने वाली होने से गुप्ति, (४४) विशिष्ट अध्यवसाय रूप होने से ववसाय (व्यवसाय), (४५) मन के शुद्ध भावों को उन्नति देने वाली होने से उस्सो (उच्छ्य ), (४६) भाव से देवपूजा रूप होने से जएणं (यज्ञ), (४७) गुणों का स्थान होने से आयतणं (आयतन), (४८) अभय दान की देने वाली होने से यजना अथवा प्राणियों की रक्षा रूप होने से जतना (यतना),(४६) प्रमाद का त्याग रूप होने से अप्पमाओ (अप्रमाद), (५०) प्राणियों के लिए आश्वासन रूप होने से अस्सासो (आश्वास), (५१)विश्वास रूप होने से वीसासो (विश्वास), (५२) जगत् के सब प्राणियों को अभयदान की देने वाली होने से अभत्रो (अभय), (५३).किसी भी प्राणी को न मारने रूप होने से अमाघाओ (अमाघात-अमारि), (५४) पवित्र होने से चोरव (चोक्ष), (५५) अति पवित्र होने के कारण अहिंसा पवित्त (पवित्र) कही जाती है । (५६) सूती (शुचि)- भाव शुचि रूप होने से अहिंसा