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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
(८) सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन- ऊपर लिखे हुए सभी भावों · को जीव जब क्रमशः फरस लेता है तो भाव मुक्ष्म पुद्गलपरावर्तन होता है । अर्थात् किसी एक भव के मन्द परिणाम को फरसने के बाद अगर वह दूसरे भावों को फरसता है तो वह इसमें नहीं गिना जायगा। जब उसी भाव के दूसरे परिणाम को फरसेगा तभी वह गिना जायगा। इस प्रकार क्रमशः प्रत्येक भाव के सभी परिणामों को फरसता हुआ जब सभी भावों को फरस लेता है तो भाव सूक्ष्म पुद्गल परावर्तन होता है।
इन आठ के सिवाय किसी किसी ग्रन्थ में भव पुद्गलपरावर्तन भी दिया है। उसका स्वरूप निम्नलिखित है
कोई जीव नरक गति में दस हजार वर्ष की आयु से लेकर एक एक समय को बढ़ाते हुए असंख्यात भवों में नब्बे हजार वर्ष तक की आयु प्राप्त करे तथा दस लाख वर्ष स्थिति की आय से लेकर एक एक समय बढ़ाते हुए तेतीस सागरोपम की आयु माप्त करे । इसी प्रकार देवगति में दस हजार वर्ष से लेकर एक एक समय बढ़ाते हुए तेतीस सागरोपम को आयु प्राप्त करे । मनुष्य तथा तिर्यश्च भव में क्षुल्लक भव से लेकर एक एक समय बढ़ाते हुए तीन पल्योपम की स्थिति को फरसे तब बादर भव पलपरावर्तन होता है। __ जब नरक वगैरह की स्थिति को क्रमशः फरस ले तो सूक्ष्म भव पुद्गलपरावतेन होता है। पूरे दस हजार वर्ष की आयु फरस कर जब तक दस हजार वर्ष और एक समय की आयु नहीं फरसेगा वह काल इसमें नहीं गिना जाता। जब क्रमशः पहिले एक समय की फिर दूसरे समय की इस प्रकार सभी भव स्थितियों को फरस लेता है तभी सूक्ष्म पुद्गलपरावर्तन होता है। भव पुद्गलपरावर्तन की मान्यता दिगम्बरों में प्रचलित है।
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