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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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जीव एक श्रेणी को छोड़कर दूसरी श्रेणी के किसी प्रदेश में जन्म प्राप्त करता है तो वह इसमें नहीं गिना जाता । चाहे वह प्रदेश बिल्कुल नया ही हो । बादर में वह गिन लिया जाता है । जिस श्रेणी के प्रदेश में एक बार मृत्यु प्राप्त की है जब उसी श्रेणी के दूसरे प्रदेश में मृत्यु प्राप्त करे तभी वह गिना जाता है। (५) बादर काल पुलपरावर्तन- बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का एक कालचक्र होता है । जब कालचक्र के प्रत्येक समय को जी अपनी मृत्यु के द्वारा फरस लेता है तो बादर काल पुलपरावर्तन होता है | जब एक ही समय में जीव दुसरी बार मरण प्राप्त कर लेता है तो वह इसमें नहीं गिना जाता । इस प्रकार अनेक भव करता हुआ जीव कालचक्र के प्रत्येक समय को फरस लेता है । तब बादर कालपुद्गलपरावर्तन होता है । (६) सूक्ष्म कालपुद्गलपरावर्तन - काल चक्र के प्रत्येक समय को जब क्रमशः मृत्यु द्वारा फरसता है तो सूक्ष्म काल पुगलपरावर्तन होता है । अगर पहले समय को फरस कर जीव तीसरे समय को फरस ले तो वह इसमें नहीं गिना जाता। जब दूसरे समय में जीव की मृत्यु होगी तभी वह गिना जायगा । इस प्रकार क्रमशः कालचक्र के सभी समय पार कर लेने पर सूक्ष्म काल पुद्गलपरावर्तन होता है |
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(७) बादर भाव पुद्गलपरावर्तन - रसबन्ध के कारणभूत कषाय के अध्यवसायस्थानक मन्द मन्दतर और मन्दतम के भेद से असंख्यात लोकाकाश प्रमाण हैं। उनमें से बहुत से अध्यवसायस्थानक सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम वाले रसबन्ध के कारण हैं । उन सब अध्यवसायों को जब जीव मृत्यु के द्वारा फरस लेता है अर्थात् मन्द मन्दतर आदि उनके सभी परिणामों में एक बार मृत्यु प्राप्त कर लेता है तब एक बादर पुद्गलपरावर्तन होता है।