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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
परावर्तन, उससे अनन्तगुणे औदारिक पुद्गलपरावर्तन, उससे अनन्तगुणे तैनस पुद्गलपरावर्तन तथा उससे अनन्तगुणे कार्मण पुद्गलपरावर्तन हुए।
किसी आचार्य का मत है कि जीव जब लोक में रहे हुऐ सभी पुद्गलपरमाणुओं को औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर द्वारा फरस लेता है अर्थात् प्रत्येक परमाणु को प्रत्येक शरीर रूप में परिणत कर लेता है तो बादर द्रव्यपुद्गलपरावर्तन होता है। सभी परमाणुओं को एक शरीर के रूप में परिणमा कर फिर दूसरे शरीर रूप में परिणमावे, इस प्रकार क्रम से जब सभी शरीरों के रूप में परिणमा लेता है तो सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन होता है । कुछ परमाणुओं को औदारिक शरीर के रूप में परिणमा कर अगर वैक्रिय के रूप में परिणमाने लग जाय तो वह इसमें नहीं गिना जाता। (३) बादर क्षेत्रपुद्गलपरावर्तन- एक अंगुल आकाश में इतने
आकाशप्रदेश हैं कि प्रत्येक समय में एक एक प्रदेश को स्पर्श करने से असंख्यात कालचक्र बीत जायँ । इस प्रकार के मूक्ष्मप्रदेशों वाले सारे लोकाकाश को जब जीव प्रत्येक प्रदेश में जीवन-मरण पाता हुआ पूरा कर लेता है तो बादर क्षेत्रपुद्गलपरावर्तन होता है। जिस प्रदेश में एक बार मृत्यु प्राप्त कर चुका है अगर उसी प्रदेश में फिर मृत्यु प्राप्त करे तो वह इसमें नहीं गिना जायगा । सिर्फ वे ही प्रदेश गिने जाएंगे जिनमें पहले मृत्यु प्राप्त नहीं की। यद्यपि जीव असंख्यात प्रदेशों में रहता है, फिर भी किसी एक प्रदेश को मुख्य रख कर गिनती की जा सकती है। (४) सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गलपरावर्तन- एक प्रदेश की श्रेणी के ही दूसरे प्रदेश में मरण प्राप्त करता हुआ जीव जब लोकाकाश को पूरा कर लेता है तो सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गलपरावर्तन होता है। अगर