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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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गृहीतग्रहणा है। कुछ गृहीत तथा कुछ अगृहीत पुद्गलों को ग्रहण करना अगृहीतग्रहणा है। काल की इस गिनती में अगृहीतग्रहणा के द्वारा ग्रहण किए हुए पुद्गलस्कन्ध ही लिए जाते हैं गृहीत या मिश्र नहीं लिए जाते। ___ प्रत्येक परमाणु औदारिक आदि रूप सात वर्गणाओं में परिणमन करे। जब जीव सारे लोक में व्याप्त उन सभी परमाणुओं को प्राप्त करले तो एक द्रव्य पुद्गलपरावर्तन होता है। (२) सूक्ष्म द्रव्यपुद्गलपरावर्तन- जिस समय जीव सर्वलोकवर्ती अणु को औदारिक आदि के रूप में परिणमाता है, अगर उस समय बीच में वैक्रिय पुद्गलों को ग्रहण कर लेवे तो वह समय पुद्गल परावतेन की गिनती में नहीं आता। इस प्रकार एक
औदारिक पुद्गलपरावर्तन में ही अनन्त भव करने पड़ते हैं। बीच में दूसरे परमाणुओं की परिणति को न गिनते हुए जव जीव सारे लोक के परमाणुओं को औदारिक के रूप में परिणत कर लेता है तब औदारिक मूक्ष्म द्रव्यपुद्गलपरावर्तन होता है। इसी तरह वैक्रिय आदि सातों वर्गणाओं के परमाणुओं को परिणमाने के बाद वैक्रियादि रूप सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन होता है।
इनमें कामेण पुद्गलपरावर्तनकाल अनन्त है। उससे अनन्तगुणा तैजस पुद्गलपरावर्तनकाल । इस प्रकार अधिक होते हुए
औदारिक पुद्गलपरावर्तन सब से अनन्तगुणा हो जाता है। कार्मण वर्गणा का ग्रहण प्रत्येक प्राणी के प्रत्येक भव में होता है। इस लिए उसकी पूर्ति जल्दी होती है। तैजस उससे अनन्तगुणे काल में पूरा होता है । इसी प्रकार उत्तरोत्तर जानना चाहिये।
अतीत काल में एक जीव के अनन्त वैक्रिय पुद्गलपरावर्तन हुए। उससे अनन्तगुणे भाषा पुद्गलपरावर्तन । उससे अनन्तगुणे मनःपुद्गलपरावर्तन, उससे अनन्तगुणे श्वासोच्छ्वास पुद्गल
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