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श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला
आणपन्निक के इन्द्र सन्निहित और सामान्य। पाणपनिक के धाता और विधाता । ऋषिवादी के ऋषि और ऋषिपाल । भूतवादी के ईश्वर और माहेश्वर। कंदित के सुवत्स और विशाल । महाकदित के हास और रति । कोहंड के श्वेत और महाश्वेत । पतंग के पतंग और पतंगपति । . स्थिति- व्यन्तर देवों का आयुष्य जघन्य दस हजार वर्ष तथा उत्कृष्ट एक पल्योपम होता है। व्यन्तर देवियों का जघन्य दस हजार वर्ष उत्कृष्ट अर्द्धपल्योपम । (पन्नवणा संज्ञापद सूत्र ७८, स्थिति पद सुत्र २१, स्थान पद सूत्र ३८-४१)
(ठाणांग, सूत्र ६.५)(जीवाभिगम, देवाधिकार ) ६१५- लौकान्तिक देव आठ
'आठ कृष्णराजियों के अवकाशान्तरों में आठ लौकान्तिक विमान हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं
(१) अर्ची (२) अर्चिमाली (३) वैरोचन (४) प्रभंकर (५) चन्द्राम (६)सूर्याभ(७) शुक्राभ () सुप्रतिष्टाभ।
अर्ची विमान उत्तर और पूर्व की कृष्णराजियों के बीच में है। अर्चिमाली पूर्व में है। इसी प्रकार सभी को जानना चाहिए। रिष्टविमान विल्कुल मध्य में है। इनमें आठ लौकान्तिक देव रहते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- (१) सारस्वत (२) (२) आदित्य (३) वह्नि (४) वरुण (५) गर्दतोय (६) तुषित (७) अव्यावाध (E) आग्नेय । ये देव क्रमशः अर्ची आदि विमानों में रहते हैं।
सारस्वत और आदित्य के सात देव तथा उनके सात सौ परिवार है। वह्नि और वरुण के चौदह देव तथा चौदह हजार परिवार है। गर्दतोय और तुषित के सात देव तथा सात हजार परिवार है। बाकी देवों के नव देव और नव सौ परिवार है।