________________
जो जैनसिद्धान्त बोल संग्रह
लौकान्तिक विमान वायु पर ठहरे हुए हैं। उन विमानों में जीव असंख्यात और अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं किन्तु देव के रूप में अनन्त बार उत्पन्न नहीं हुए। __ लौकान्तिक देवों की आठ सागरोपमकी स्थिति है। लौकान्तिक विमानों से लोक का अन्त असंख्यात हजार योजन दूरी पर है। (भग० श० ६ उ० ५) (ठाणांग, सूत्र ६२३) (जीवा. देव उ• ब्रह्मलोकवक्तव्यता) ६१६- कृष्णराजियाँ आठ
कृष्ण वर्ण की सचित्त अचित्त पृथ्वी की भित्ति के आकार व्यवस्थित पंक्तियाँ कृष्ण राजि हैं एवं उनसे युक्त क्षेत्र विशेष भी कृष्णराजि नाम से कहा जाता है। ___ सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के ऊपर और ब्रह्मलोक कल्प के नीचे रिष्ट विमान नामका पाथड़ा है । यहाँ पर आवाटक (आसन विशेष) के आकार की समचतुरस्र संस्थान वाली आठ कृष्णराजियाँ हैं । पूर्वादि चारों दिशाओं में दो दो कृष्णगजियाँ हैं। पूर्व में दक्षिण और उत्तर दिशा में तिी फैली हुईदो कृष्णगजियाँ हैं । दक्षिण में पूर्व और पश्चिम दिशा में तिर्थी फैली हुई दो कृष्णराजियों हैं । इसी प्रकार पश्चिम दिशा में दक्षिण और उत्तर में फैली हुई दो कृष्णराजियाँ हैं और उत्तर दिशा में पूर्व पश्चिम में फैली हुई दो कृष्णराजियाँ हैं। पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ क्रमशःदक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम की बाहर वाली कृष्णराजियाँ को छूती हुई हैं। जैसे पूर्व की आभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिण की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किये हुए है। इसी प्रकार दक्षिण की श्राभ्यन्तर कृष्णराजि पश्चिम की बाह्य कृष्णराजि को, पश्चिम की आभ्यन्तर कृष्णराजि उत्तर की बाह्य कृष्णराजि को और उत्तर की प्राभ्यन्तर कृष्णराजि पूर्व की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किये हुए है।