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________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (४) उत्तिंग मूक्ष्म- कीड़ी नगरा अर्थात् कीड़ियों के बिल को उत्तिंग मूक्ष्म कहते हैं। उस बिल में दिखाई नहीं देने वाली चींटिया और बहुत से दूसरे सूक्ष्म जीव होते हैं। (५) पनक सूक्ष्म-- चौमासे अर्थात् वर्षा काल में भूमि और काठ वगैरह पर होने वाली पाँचों रंग की लीलन फूलन को पनक सूक्ष्म कहते हैं। (६) बीज सूक्ष्म-- शाली आदि बीज का मुखमूल जिससे अंकुर उत्पन्न होता है, जिसे लोक में तुष कहा जाता है वह बीज सूदम है। (७) हरित सूक्ष्म-- नवीन उत्पन्न हुई हरित काय जो पृथ्वी के समान वर्ण वाली होती है वह हरित सूक्ष्म है। (८) अण्ड मूक्ष्म- मक्खी, कीड़ी, छिपकली गिरगट आदि के सूक्ष्म अंडे जो दिखाई नहीं देते वे अंड मूक्ष्म हैं। (दशवैकालिक अध्ययन ८ गाथा १५ ) (ठाणांग, सूत्र ६१५) ६१२- तृणवनस्पतिकाय आठ बादर वनस्पतिकाय को तृणवनस्पतिकाय कहते हैं। इसके आठ भेद हैं- (१) मूल अर्थात् जड़ । (२) कन्द- स्कन्ध के नीचे का भाग । (३) स्कन्ध- धड़, जहाँ से शाखाएं निकलती हैं। (४) त्वक्- ऊपर की छाल । (५) शाखाएं । (६) प्रवाल अर्थात् अंकुर । (७) पत्ते और (८) फूल। ६१३- गन्धर्व (वाणव्यन्तर) के आठ भेद __जो वाणव्यन्तर देव तरह तरह की रागरागिणियों में निपुण होते हैं, हमेशा संगीत में लीन रहते हैं उन्हें गन्धर्व कहते हैं। ये बहुत ही चञ्चल चित्त वाले, हँसी-खेल पसन्द करने वाले, गम्भीर हास्य और बातचीत में प्रेम रखने वाले, गीत और नृत्य में रुचि वाले, वनमाला वगैरह सुन्दर सुन्दर आभूपण पहन कर प्रसन्न होने वाले, सभी ऋतुओं के पुष्प पहन कर
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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