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श्री सेठिया जैन मन्थमाला
जैसे मनुष्य, माय, भैंस, मृग आदि । ये जीव जब गर्भ से बाहर आते हैं तब इनके शरीर पर एक झिल्ली रहती है, उसी को जरायु कहते हैं। उससे निकलते ही ये जीव चलने फिरने लगते हैं। (४) रसज- द्ध, दही, घी आदि तरल पदार्थे रस कहलाते हैं। उनके विकृत हो जाने पर उनमें पड़ने वाले जीव । (५) संस्वेदज-पसीने में पैदा होने वाले जीव । अँ,लीख आदि। (६) संमूर्छिम-- शीत, उष्ण आदि के निमित्त मिलने पर आस पास के परमाणुओं से पैदा होने वाले जीव । मच्छर, पिपीलिका, पतंगिया वगैरह। (७) उद्भिज- उद्भेद अर्थात् जमीन को फोड़ कर उत्पन्न होने वाले जीव । जैसे पतंगिया,टिड्डीफाका, खंजरीट (ममोलिया)। (८) औपपातिक- उपपात जन्म से उत्पन्न होने वाले जीव । शय्या तथा कुम्भी से पैदा होने वाले देव और नारकी जीव
औपपातिक हैं। (दशवै० अध्ययन ४ठाणांग, सूत्र ५६५ पाठ योनिसंग्रह) ६११- सूक्ष्म पाठ ___बहुत मिले हुए होने के कारण या छोटे परिमाण वाले होने के कारण जो जीव दृष्टि में नहीं आते या कठिनता से आते हैं, वे सूक्ष्म कहे जाते हैं। सूक्ष्म पाठ हैं--
सिह पुप्फसुहुमं च पाणुत्तिगं तहेवय ।
पाणगं वीयहरिनं च अंडसुहमं च अट्ठमं ॥ (१) स्नेह सूक्ष्म- ओस, बर्फ, धुंध, ओले इत्यादि सूक्ष्म जल को स्नेह सूक्ष्म कहते हैं। (२) पुष्प सूक्ष्म-बड़ और उदुम्बर वगैरह के फूल जो सूक्ष्म तथा उसी रंग के होने से जल्दी नजर नहीं आते उन्हें पुष्प मूक्ष्म कहते हैं। (३) प्राणि सूक्ष्म-- कुन्थुआ वगैरह जीव जो चलते हुए ही दिखाई देते हैं, स्थिर नजर नहीं आते ये प्राणिमूक्ष्म हैं।