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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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छोटी है। इसलिए इसका नाम ईषत् है। अथवा पद के एक । देश में पद समुदाय का उपचार कर ईषत्माग्भारा का नाम । ईषत् रखा गया है। , (२) ईपत्याग्भारा- रत्नप्रभादि पृथ्वियों की अपेक्षा इसका
उच्छाय (ऊँचाई) रूप प्राग्भार थोड़ा है, इसलिए इसका नाम ईषत्माग्भारा है। (३) तन्वी-शेष पृध्वियों की अपेक्षा छोटी होने से ईषत्पाग्भारा पृथ्वी तन्वी नाम से कही जाती है। (४) तनुतन्वी- जगत्मसिद्ध तनु पदार्थों से भी अधिक तनु (पतली) होने से यह तनुतन्वी कहलाती है। मक्खी के पंख से भी इस पृथ्वी का चरम भाग अधिक पतला है। (५) सिद्धि-सिद्धि क्षेत्र के समीप होने से इसका नाम सिद्धि
है। अथवा यहाँ जाकर जीव सिद्ध, कृतकृत्य हो जाते हैं। इस · लिए यह सिद्धि कहलाती है। (६) सिद्धालय- सिद्धों का स्थान । (७) मुक्ति-जहाँ जीव सकल कर्मों से मुक्त होते हैं वह मुक्ति है। (८) मुक्तालय- मुक्त जीवों का स्थान ।
(पनवणा पद २) (ठाणांग ८, सूत्र ६४६) ६१०- त्रस पाठ
इच्छानुसार चलने फिरने की शक्ति रखने वाले जीवों को यस कहते हैं, अथवा बेइन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक के जीवों को त्रस कहते हैं । इनके आठ भेद हैं(१) अंडन- अंडे से पैदा होने वाले जीव, पक्षी आदि । (२) पोतज-- गर्भ से पोत अर्थात् कोथली सहित पैदा होने वाले जीव । जैसे हाथी वगैरह । (३) जरायुज-- गर्भ से जरायु सहित पैदा होने वाले जीव ।