________________
१२६
मो सेठिया जैन प्रन्थमाला
६०८- पृथ्वियाँ आठ
(१) रत्नप्रभा (२) शर्कराप्रभा (३) वालुकाप्रभा (४) पंकप्रभा (५) धूमप्रभा (६) तमःप्रभा (७) तमस्तमःप्रभा (८) ईषत्पाग्भारा। सात पृथ्वियों का वर्णन इसी के द्वितीय भाग सातवें बोल संग्रह बोल नं० ५६० में दिया गया है । ईषत्याग्भारा का स्वरूप इस प्रकार है- ईपत्माग्भारा पृथ्वी सर्वार्थसिद्ध विमान की सब से ऊपर की शूमिका (स्तूपिका-चूलिका) के अग्रभाग से बारह योजन ऊपर अवस्थित है। मनुष्य क्षेत्र की लम्बाई चौड़ाई की तरह ईपत्माग्भारा पृथ्वी की लम्बाई चौड़ाई भी ४५ लाख योजन है। इसका परिक्षेप एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दोसौ उनपचास (१४२३०२४६) योजन विशेषाधिक है। इस पृथ्वी के मध्य भाग में आठ योजन आयाम विष्कम्भ वाला क्षेत्र है, इसकी मोटाई भी आठ योजन ही है । इसके आगे ईपत्याग्भारा पृथ्वी की मोटाई क्रमशः थोड़ी थोड़ी मात्रा में घटने लगती है। प्रति योजन मोटाई में अंगुलपृथक्त्व का हास होता है। घटते घटते इस पृथ्वी के चरम भाग की मोटाई मक्खी के पंख से भी कम हो जाती है। यह पृथ्वी उत्तान छत्र के आकार रही हुई है। इसका वर्ण अत्यन्त श्वेत है एवं यह स्फटिक रत्नमयी है । इस पृथ्वी के एक योजन ऊपर लोक का अन्त होता है। इस योजन के ऊपर के कोस का छठा भाग जो ३३३ धनुप
और ३२ अंगुल परिमाण है वहीं पर सिद्ध भगवान् विराजते हैं। (ठाणांग ८. सत्र ६४८ ) (पनवणा पद २) (उत्तराध्ययन अ० ३६ गा० ५६से६२) ६०६-ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के आठ नाम -
(१) ईषत् (२) ईषत्प्राग्भारा (३) तन्वी (४) तनुतन्वी (५) सिद्धि (६) सिद्धालय (७) मुक्ति (८) मुक्तालय। (१) ईषत्- रत्नप्रभादि पृश्चियों की अपेक्षा ईपत्याग्भारा पृथ्वी