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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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सरल स्वभाव, पराक्रमी, ज्ञानी या दूसरे विशेष गुणों वाले होते हैं उनमें उतने लक्षण अधिक पाए जाते हैं। (८)व्यञ्जन-मसा वगैरह। जैसे-जिस स्त्री की नाभि से नीचे कुंकुम की बूंद के समान मसा या कोई लक्षण हो तो वह अच्छी मानी गई है। (ठाणांग, सूत्र ६०८) ( प्रवचनसारोद्धार गा० १५०६ द्वार २५७) ६०६- प्रयत्नादि के योग्य आठ स्थान
नीचे लिखी आठ बातें अगर प्राप्त न हो तो प्राप्त करने के लिए कोशिश करनी चाहिए। अगर प्राप्त हों तो उनकी रक्षा के लिए अर्थात् वे नष्ट न हों, इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए। शक्ति न हो तो भी उनके पालन में लगे रहना चाहिए तथा दिन प्रतिदिन उत्साह बढ़ाते जाना चाहिए। (१) शास्त्र की जिन बातों को या जिन सूत्रों को न सुना हो उन्हें सुनने के लिए उद्यम करना चाहिए। (२) सुने हुए शास्त्रों को हृदय में जमाकर उनकी स्मृति को स्थायी बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। (३) संयग द्वारा पाप कर्म रोकने की कोशिश करनी चाहिए। (४) तप के द्वारा पूर्वोपार्जित कर्मों की निर्जरा करते हुए
आत्मविशुद्धि के लिए यन करना चाहिए। (५)नए शिष्यों का संग्रह करने के लिए कोशिश करनी चाहिए। (६) नर शिष्यों को साधु का प्राचार तथा गोचरी के भेद अथवा ज्ञान के पाँच प्रकार और उनके विषयों को सिखाने में प्रयत्न करना चाहिए। • (७) ग्लान अर्थात् बीमार साधु की उत्साह पूर्वक वैयावच्च करने के लिए यत्न करना चाहिए। (८) साधर्मियों में विरोध होने पर रांग देषरहित होकर अथवा आहारादि और शिष्यादि की अपेक्षा से रहित होकर बिना