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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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तो वह राजा को विजय का सूचक है। (५) अङ्ग- शरीर के किसी अङ्ग के स्फुरण वगैरह से शुभाशुभ निमित्त का जानना । पुरुष के दक्षिण तथा स्त्री के वाम अङ्गों का स्फुरण शुभ माना गया है। अगर सिर में स्फुरण (फड़कन) हो तो पृथ्वी की प्राप्ति होती है, ललाट में हो तो पद वृद्धि होती है, इत्यादि। (६) स्वर- पड्जादि सात स्वरों से शुभाशुभ बताना। जैसेपड्ज स्वर से मनुष्य आजीविका प्राप्त करता है, किया हुआ काम बिगड़ने नहीं पाता, गोएं मित्र तथा पुत्र प्राप्त होते हैं। वह स्त्रियों का वल्लभ होता है। अथवा पक्षियों के शब्द से शुभाशुभ जानना। जैसे-श्यामा का चिलिचिलि शब्द पुण्य अर्थात् मंगल रूप होता है । मुलिमूलि धन देने वाला होता है। चेरीचेरी दीप्त तथा 'चिकुत्ती' लाभ का हेतु होता है। (७) लक्षण- स्त्री पुरुषों के रेखा या शरीर की बनावट वगैरह से शुभाशुभ बताना लक्षण है। जैसे- हड्डियों से जाना जाता है कि यह व्यक्ति धनवान होगा। मांसल होने से सुखी समझा जाता है। शरीर का चमड़ा प्रशस्त होने से विलासी होता है। आरा सुन्दर होने से स्त्रियों का वल्लभ, प्रोजस्वी तथा गम्भीर शब्द वाला होने से हुक्म चलाने वाला तथा शक्तिसम्पन्न होने से सब का स्वामी समझा जाता है।
शरीर का परिमाण वगैरह लक्षण हैं तथा मसा वगैरह व्यञ्जन हैं । अथवा लक्षण शरीर के साथ उत्पन्न होता है और व्यञ्जन बाद में उत्पन्न होता है । निशीथ मूत्र में पुरुष के लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं - साधारण मनुष्यों के बत्तीस, बलदेव
और वासुदेवों के एक सौ आठ, चक्रवर्ती और तीर्थङ्करों के एक हजार आठ लक्षण हाथ पैर वगैरह में होते हैं। जो मनुष्य