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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
निमित्त के आठ भेद हैं- (१) भौम (२) उत्पात ( ३ ) स्वाम (४) अन्तरिक्ष (५) अङ्ग (६) स्वर (७) लक्षण (८) व्यञ्जन | ( १ ) भौम भूमि में किसी तरह की हलचल या और किसी लक्षण से शुभाशुभ जानना । जैसे- जब पृथ्वी भयङ्कर शब्द करती हुई काँपती है तो सेनापति, प्रधानमन्त्री, राजा और राज्य को कष्ट होता है।
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(२) उत्पात - रुधिर या हड्डी वगैरह की दृष्टि होना । जैसेजहाँ चर्बी, रुधिर, हड्डी, धान्य, अङ्गारे या पीप की दृष्टि होती है। वहाँ चारों तरह का भय है ।
( ३ ) स्वाम- अच्छे या बुरे स्वप्नों से शुभाशुभ बताना । जैसेस्वप्न में देव, यज्ञ, पुत्र, बन्धु, उत्सव, गुरु, छत्र और कमल का देखना; प्राकार, हाथी, मेघ, वृत्त, पहाड़ या प्रासाद पर चढ़ना; समुद्र को तैरना, सुरा, अमृत, दूध और दही का पीना; चन्द्र और सूर्य का मुख में प्रवेश तथा मोक्ष में बैठा हुआ अपने को देखना; ये सभी स्वप्न शुभ हैं अर्थात् अच्छा फल देने वाले हैं। जो व्यक्ति स्वम में लाल रंग वाले मूत्र या पुरीष करता है और उसी समय जग जाता है, उसे अर्थहानि होती है । यह अशुभ है। ( ४ ) आन्तरिक्ष- आकाश में होने वाले निमित्त को आन्तरिक्ष कहते हैं । यह कई तरह का है- ग्रहवेध अर्थात् एक ग्रह में से दूसरे ग्रह का निकल जाना। भूताहास अर्थात् आकाश में अचानक अव्यक्त शब्द सुनाई पड़ना । गन्धर्वनगर अर्थात् सन्ध्या के समय बादलों में हाथी घोड़े वगैरह की बनावट । पीले गन्धर्वनगर से धान्य का नाश जाना जाता है । मञ्जीठ के रंग वाले से गौओं का हरण । अव्यक्त (धुंधला) वर्ण वाले सेबल या सेना का क्षोभ अर्थात् अशान्ति । अगर सौम्या (पूर्व) दिशा में स्निग्ध प्राकार तथा तोरण वाला गन्धर्वनगर हो
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