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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
तक पहुँच सकता है। __ योग से तरह तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। उनके प्रलोभन में न पड़कर अगर मोक्ष को ही अपना ध्येय बनाया जाय तो इसी तरह अभ्यास करते करते अन्त में मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
.. ( योगशास्त्र, हेमचन्द्राचार्य ४-५ प्रकाश ) ( राजयोग, स्वामी विवेकानन्द) ६०२-छद्मस्थ पाठबातें नहीं देख सकता
नीचे लिखी आठ बातों को सम्पूर्णरूप से छद्मस्थ देख या जान नहीं सकता। (१) धर्मास्तिकाय (२) अधर्मास्तिकाय (३) आकाशास्तिकाय (४) शरीर रहित जीव (५)परमाणुपुद्गल (६) शब्द (७) गन्ध और (८) वायु । (ठाणांग, सूत्र ६१०) ६०३- चित्त के आठ दोष
चित्त के नीचे लिखे पाठ दोष ध्यान में विघ्न करते हैं तथा कार्यसिद्धि के प्रतिबन्धक हैं। इसलिए उन्नतिशील व्यक्ति को इन से दूर रहना चाहिए। दोषो ग्लानिरनुष्ठितौ प्रथम उद्वेगो द्वितीयस्तथा । स्याड्रान्तिश्च तृतीयकश्चपलतोत्थानं चतुर्थो मतः॥ क्षपेः स्यान्मनसः क्रियान्तरगतिमुक्वा प्रवृत्तक्रियामासङ्गः प्रकृतक्रियारतिरतो दुर्लक्ष्यतोवं पुनः॥१॥ तत्कालोचितवर्तने रुचिरथो रागश्च कालान्तरकर्तव्येऽन्यमुदाह्वयो निगदितो दोषः पुनः सप्तमः॥ उच्छेदः सदनुष्ठिते रुगभिधो दोषोऽष्टमो गद्यते। ध्याने विघ्नकरा इमेऽष्ट मनसो दोषा विमोच्याःसदा ॥२॥ (१) ग्लानि- धार्मिक अनुष्ठान में ग्लानि होना चित्त का पहला दोष है।