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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
कर शरीर के किसी स्थलबिन्दु पर लगाना । जैसे- बाकी सब ङ्ग को भूलकर सारा ध्यान हाथ, पैर या और किसी अङ्ग पर जमा लेना । इस तरह ध्यान जमाने का अभ्यास हो जाने से शरीर के किसी भी अङ्ग की बीमारी दूर की जा सकती है।
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धारणा कई प्रकार की होती है। इसके साथ थोड़ी कल्पना का सहारा ले लेना अच्छा होता है। जैसे मन से हृदय में एक बिन्दु का ध्यान करना । यह बहुत कठिन है। सरलता के लिए किसी कमल या प्रकाश पुञ्ज वगैरह की कल्पना की जा सकती है । इसी तरह मस्तिष्क में कमल की कल्पना या सुषुम्ना नाड़ी में शक्ति और कमल आदि की कल्पना की जाती है । (७) ध्यान - योग का सातवाँ अङ्ग ध्यान है । बहुत देर तक चित्त को किसी एक ही बात के सोचने में लगाए रखना ध्यान
। ध्यान में चित्त की लहरें बिल्कुल बन्द हो जाती हैं। बारह सेकण्ड तक चित्त एक स्थान पर रहे तो वह धारणा है । बारह धारणाओं का एक ध्यान होता है। ध्यान के चार भेद और उनकी व्याख्या इसी ग्रन्थ के पहले भाग बोल नं २१५ में है ।
( ८ ) समाधि - बारह ध्यानों की एक समाधि होती हैं। इसके दो भेद हैं- सम्प्रज्ञात समाधि और असम्प्रज्ञात समाधि । मन से किसी अच्छी बात का ध्यान करना और उसी वस्तु पर बहुत देर तक मन को टिकाए रखना सम्प्रज्ञात समाधि है । मन में कुछ न सोचना और इसी तरह बहुत देर तक मन के व्यापार को बन्द रखना सम्प्रज्ञात समाधि है
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योगाभ्यास करने के लिए योगी को हमेशा अभ्यास करना चाहिए । एकान्त में रहना चाहिए। आहार विहारादि नियमित रखना तथा इन्द्रिय विषयों से सदा अलग रहना चाहिए। तभी क्रमशः यम नियमादि का साधन करते हुए असम्मज्ञातावस्था