________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
१११
(६) कर्मभूमिज आदि मनुष्य, स्त्री, पुरुष तथा नपुंसकों की अपेक्षा से- अन्तीपों की स्त्रियाँ और पुरुष सब से कम हैं । युगल के रूप में उत्पन्न होने से स्त्री और पुरुषों की संख्या वहाँ बराबर ही है। देवकुरु और उत्तरकुरु रूप अकर्मभूमियों के स्वी पुरुष उनसे संख्यातगुणे हैं । स्त्री और पुरुषों की संख्या वहाँ भी बराबर ही है । हरिवर्ष और रम्यकवर्ष के स्त्री पुरुष उनसे संख्यातगुणे तथा हैमवत और हैरण्यवत के उनसे संख्यातगुणे हैं । युगलिए होने के कारण स्त्री और पुरुषों की संख्या इनमें भी बराबर ही है। भरत और ऐरावत के कर्मभूमिज पुरुष उनसे संख्यातगुण हैं, लेकिन आपस में बराबर हैं। दोनों क्षेत्रों की स्त्रियाँ उनसे संख्यातगुणी (सत्ताईस गुणी) हैं। आपस में ये बराबर हैं। पूर्व विदेह और अपरविदेह के कर्मभूमिज पुरुष उनसे संख्यातगुणे हैं। स्त्रियाँ उनसे संख्यातगुणीअर्थात् सत्ताईसगुणी हैं। अन्तीपों के नपुंसक उनसे असंख्यातगुणे हैं। देवकुरु और उत्तरकुरु के नपुंसक उनकी अपेक्षा संख्यातगुणे हैं । हरिवर्ष
और रम्यकवर्ष के नपुंसक उनसे संख्यातगुणे तथा हैमवत और हैरण्यवत के उनसे संख्यातगुणे हैं। उनकी अपेक्षा भरत और ऐरावत के नपुंसक संख्यातगुणे हैं तथा पूर्व और पश्चिमविदेह के उनसे संख्यातगुणे हैं।
(७) भवनवासी आदि देव और देवियों की अपेक्षा सेअनुत्तरौपपातिक के देव सब से कम हैं । इसके बाद ऊपर के ग्रैवेयक, बीच के ग्रैवेयक, नीचे के अवेयक, अच्युत, पारण, प्राणत और आनतकल्प के देव क्रमशः संख्यातगुणे हैं । इनके बाद सातवीं पृथ्वी के नारक, छठी पृथ्वी के नारक, सहस्रार कल्प के देव, महाशुक्र कल्प के देव, पाँचवीं पृथ्वी के नारक, लान्तक कल्प के देव, चौथी पृथ्वी के नारक, ब्रह्मलोक कल्प