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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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(५) स्निग्ध- चिकना स्पर्श स्निग्ध कहलाता है। (६) रुक्ष- रूखे पदार्थ का स्पर्श रुक्ष कहलाता है। (७) शीत- ठण्डा स्पर्श शीत कहलाता है। (८) उष्ण- अग्नि की तरह उष्ण (गर्म) स्पर्श को उष्ण कहते
हैं। . (ठाणांग ८, सूत्र ५६६) (पनवणा पद २३ वां उ० २) ५६८- दर्शन आठ
वस्तु के सामान्य प्रतिभास को दर्शन कहते हैं। ये आठ हैं(१) सम्यग्दर्शन- यथार्थ प्रतिभास को सम्यग्दर्शन कहते हैं। (२) मिथ्यादर्शन- मिथ्या अर्थात् विपरीत प्रतिभास को
मिथ्यादर्शन कहते हैं। (३) सम्यग मिथ्यादर्शन-कुछ सत्य और कुछ मिथ्या प्रतिभास
को सम्यग् मिथ्यादर्शन कहते हैं। (४) चक्षुदर्शन ( ५ ) अचक्षुदर्शन (६) अवधिदर्शन (७) केवलदर्शन । इन चारों का स्वरूप प्रथम भाग के बोल नं. १६६ में दे दिया गया है। (८) स्वप्नदर्शन- स्वप्न में कल्पित वस्तुओं को देखना ।
(ठाणांग, सूत्र ६१८) ५६४-वेदों का अल्प बहुत्व आठ प्रकार से
संख्या में कौन किससे कम है और कौन किससे अधिक है, यह बताने को अल्पबहुत्व कहते हैं। जीवाभिगम मूत्र में यह आठ प्रकार का बताया गया है। (१) तिर्यञ्चयोनि के स्त्री पुरुष और नपंसकों की अपेक्षा सेतिर्यश्च योनि के पुरुष सब से थोड़े हैं, तिर्यश्च योनि की स्त्रियाँ उनसे संख्यातगुणी अधिक हैं, नपुंसक उनसे अनन्तगुणे हैं। (२) मनुष्य गति के पुरुष, स्त्री और नपुंसकों की अपेक्षा सेसब से कम मनुष्य पुरुष हैं, मनुष्य स्त्रियाँ उनसे संख्यातगुणी