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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
( २ ) कर्म - कर्ता क्रिया के द्वारा जिस वस्तु को प्राप्त करना चाहता है उसे कर्म कहते हैं। जैसे राम पानी पीता है । यहाँ कर्ता पीना रूप क्रिया द्वारा पानी को प्राप्त करना चाहता है । इस लिए पानी कर्म है | इसका चिह्न है ' को ' । यह भी बहुत जगह बिना चिह्न के आता है।
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(३) करण - क्रिया की सिद्धि में जो वस्तु बहुत उपयोगी हो, उसे करण कहते हैं। जैसे-- राम ने गिलास से पानी पीया । यहाँ 'गिलास' पीने का साधन है। इसके चिह्न हैं- 'से' और 'के द्वारा' । ( ४ ) सम्प्रदान- जिसके लिए क्रिया हो उसे सम्प्रदान कहते हैं। जैसे- राम के लिए पानी लाओ । यहाँ राम सम्प्रदान है। इसका चिह्न है ' के लिये ' । संस्कृत में यह कारक मुख्य रूप से ' देना' अर्थ वाली क्रियाओं के योग में आता है। कई जगह हिन्दी में जहाँ सम्प्रदान आता है, संस्कृत में उस जगह कर्म कारक भी आजाता है । इनका सूक्ष्म विवेचन दोनों भाषाओं की व्याकरण पढ़ने से मालूम पड़ सकता है ।
( ५ ) अपादान - जहाँ एक वस्तु दूसरी वस्तु से अलग होती हो वहाँ अपादान आता है। जैसे- वृक्ष से पत्ता गिरता है । यहाँ वृक्ष अपादान है | इसका चिह्न है 'से' ।
( ६ ) सम्बन्ध - जहाँ दो वस्तुओं में परस्पर सम्बन्ध बताया गया हो, उसे सम्बन्ध कहते हैं। जैसे राजा का पुरुष । इसके चिह्न हैं 'का, के, की ' । संस्कृत में इसे कारक नहीं माना जाता, क्योंकि इसका क्रिया के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । (७) अधिकरण- आधार को अधिकरण कहते हैं। जैसे मेज पर किताब है, यहाँ मेज। इसके चिह्न हैं 'में, पे, पर ' । (८) सम्बोधन - किसी व्यक्ति को दूर से बुलाने में सम्बोधन विभक्ति आती है । जैसे हे राम ! यहाँ आओ । इसके चिह्न