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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
के चारित्रात्मा नहीं होती और सिद्धों के करण वीर्यात्मा नहीं होती। किन्तु जहाँ चारित्रात्मा और वीर्यात्मा हैं वहाँ दर्शनात्मा नियमतः होती है, क्योंकि दर्शन तो सभी जीवों में होता ही है। ____ चारित्रात्मा और वीर्यात्मा का सम्बन्ध इस प्रकार है-जिम जीव के चारित्रात्मा होती है उसके वीर्यात्मा होती ही है, क्योंकि वीर्य के बिना चारित्र का अभाव है। किन्तु जिस जीव के वीर्यात्मा होती है उसके चारित्रात्मा की भजना है। असंयत अात्माओं में वीर्यात्मा के होते हुए भी चारित्रात्मा नहीं होती। __ इन आठ आत्माओं का अल्प बहुत्व इस प्रकार है- सब से थोड़ी चारित्रात्मा हैं, क्योंकि चारित्रवान् जीव संख्यात ही हैं। चारित्रात्मा से ज्ञानात्मा अनन्तगुणी है, क्योंकि सिद्ध और सम्यग्दृष्टि जीव चारित्री जीवों से अनन्तगुणे हैं। ज्ञानात्मा से कषायात्मा अनन्तगुणी है, क्योंकि सिद्धों की अपेक्षा कषायों के उदय वाले जीव अनन्तगुणे हैं। कवायात्मा से योगात्मा विशेषाधिक हैं, क्योंकि योगात्मा में कषायात्मा तो शामिल हैं ही और कषाय रहित योग वाले जीवों का भी इसमें समावेश हो जाता है। योगात्मा से वीर्यात्मा विशेषाधिक है, क्योंकि वीर्यात्मा में अयोगी आन्माओं का भी समावेश है। उपयोगात्मा, द्रव्यात्मा और दर्शनात्मा ये तीनों तुल्य हैं, क्योंकि सभी सामान्य जीव रूप हैं परन्तु वीर्यात्मा से विशेषाधिक हैं क्योंकि इन तीन आत्माओं में वीर्यात्मा वाले संसारी जीवों के अतिरिक्त सिद्ध जीवों का भी समावेश होता है। (भगवती सूत्र श० १२ उ० १०) ५६४- अनेकान्तवाद पर अाठ दोष और
उनका वारण परस्पर विरोधी मालूम पड़ने वाले अनेक धर्मों का समन्वय