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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
रहती है । जहाँ उपयोगात्मा है वहाँ चारित्रात्मा की भजना है। असंयत्ती जीवों के उपयोगात्मा तो होती है पर चारित्रात्मा नहीं होती । जहाँ उपयोमात्मा है वहाँ वीर्यात्मा की भजना है। सिद्धों में उपयोगात्मा के होते हुए भी करण वीर्यात्मा नहीं पाई जाती ।
ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा में उपयोगात्मा नियम पूर्वक रहती है । जीव का लक्षण उपयोग है। उपयोग लक्षण वाला जीव ही ज्ञान, दर्शन चारित्र, और वीर्य का धारक होता है | उपयोग शून्य घटादि में ज्ञानादि नहीं पाये जाते ।
ज्ञानात्मा के साथ ऊपर की तीन आत्माओं का सम्बन्ध निम्न लिखितानुसार है । जहाँ ज्ञानात्मा है वहाँ दर्शनारमा नियम पूर्वक होती है । ज्ञान सम्यग्दृष्टि जीवों के होता है और वह दर्शन पूर्वक ही होता है । किन्तु जहाँ दर्शनात्मा है वहाँ ज्ञानात्मा की भजना है । मिथ्यादृष्टि जीवों के दर्शनात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती ।
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जहाँ ज्ञानात्मा है वहाँ चारित्रात्मा की भजना है। अविरति सम्यग्दृष्टि जीव के ज्ञानात्मा होते हुए भी चारित्रात्मा नहीं होती। जहाँ चारित्रात्मा है वहाँ ज्ञानात्मा नियम पूर्वक होती है, क्योंकि ज्ञान के बिना चारित्र का अभाव है ।
जिस जीव के ज्ञानात्मा होती है उसके वीर्यात्मा होती भी है और नहीं भी होती । सिद्ध जीवों में ज्ञानात्मा के होते हुए भीकरण वीर्यात्मा नहीं होती । इसी प्रकार जहाँ वीर्यात्मा है वहाँ भी ज्ञानात्मा की भजना है। मिथ्यादृष्टि जीवों के वीर्यात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती ।
दर्शनात्मा के साथ चारित्रात्मा और वीर्यात्मा का सम्बन्ध इस प्रकार है- जहाँ दर्शनात्मा होती है वहाँ चारित्रात्मा और वीर्यात्मा की भजना है। दर्शनात्मा के होते हुए भी असंयतियों