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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
होती ।इसी प्रकार ज्ञानात्मा वाले जीव के भी योगात्मा की भजना है। चतुर्दश गुणस्थानवर्ती अयोगी केवली तथा सिद्ध जीवों में ज्ञानात्मा होते हुए भी योगात्मा नहीं है।
जिस जीव के योगात्मा होती है उसके दर्शनात्मा होती ही है, क्योंकि सभी जीवों में दर्शन रहता ही है। किन्तु जिस जीव के दर्शनात्मा है उसके योगात्मा की भजना है, क्योंकि दर्शन वाले जीव योग सहित भी होते हैं और योग रहित भी।
जिस जीव के योगात्मा होती है उसके चारित्रात्मा की भजना है। योगात्मा होते हुए भी अविरति जीवों में चारित्रात्मा नहीं होती । इसी तरह जिस जीव के चारित्रात्मा होती है उसके भी योगात्मा की भजना है । चौदहवें गुणस्थानवौ अयोगी जीवों के चारित्रात्मा तो है पर योगात्मा नहीं है। दूसरी वाचना में यह बताया है कि जिसके चारित्रात्मा होती है उसके नियम पूर्वक योगात्मा होती है । यहाँप्रत्युपेक्षणादि व्यापार रूप चारित्र की विवक्षा है और यह चारित्र योग पूर्वक ही होता है।
जिसके योगात्मा होती है उसके वीर्यात्मा होती ही है क्योंकि योग होने पर वीर्य अवश्य होता ही है पर जिसके वीर्यात्मा होती है उसके योगात्मा की भजना है। अयोगी केवली में वीर्यात्मा तो है पर योगात्मा नहीं है। यह बात करण और लब्धि दोनों वीर्यात्माओं को लेकर कही गई है। जहाँ करण वीर्यात्मा है वहाँ योगात्मा अवश्य रहेगी । जहाँ लब्धि वीर्यात्मा है वहाँ योगात्मा की भजना है। ___ उपयोगात्मा के साथ ऊपर की चार आत्माओं का सम्बन्ध इस प्रकार है- जहाँ उपयोगात्मा है वहाँ ज्ञानात्मा की भजना है। मिथ्यांदृष्टि जीवों में उपयोगात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती । जहाँ उपयोगात्मा है वहाँ दर्शनात्मा नियम रूप से