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श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह
मिथ्यादृष्टि के कषायात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती। इसी प्रकार जिस जीव के ज्ञानात्मा होती है उसके भी कषायात्मा की भजना है। ज्ञानी कषाय सहित भी होते हैं और कषाय रहित भी।
जिस जीव के कपायात्मा होती है उसके दर्शनात्मा नियम से होती है । दर्शन रहित घटादि में कषायों का सर्वथा अभाव है। दर्शनात्मा वालों में कषायात्मा की भजना है,क्योंकि दर्शनात्मा वाले जीव सकषायी और अकषायी दोनों प्रकार के होते हैं। __ जिस जीव के कषायात्मा होती है उसके चारित्रात्मा की भजना है और चारित्रात्मा वाले के भी कषायात्मा की भजना है। कषाय वाले जीव संयत और असंयत दोनों प्रकार के होते हैं । चारित्र वालों में भी कषाय सहित और अकषायी दोनों शामिल हैं। सामायिक अादि चारित्र वालों में कषाय रहती है और यथाख्यात चारित्र वाले कपाय रहित होते हैं।
जिस जीव के कषायात्मा है उसके वीर्यात्मा नियम पूर्वक होती है। वीर्य रहित जीव में कषायों का अभाव पाया जाता है । वीर्यात्मा वाले जीवों के कषायात्मा की भजना है, क्योंकि वीर्यात्मा वाले जीव सकषायी और अकषायी दोनों प्रकार के होते हैं।
योगात्मा के साथ आगे की पाँच आत्माओं का पारस्परिक सम्बन्ध निम्न लिखितानुसार है- जिस जीव के योगात्मा होती है उसके उपयोगात्मा नियम पूर्वक होती है। सभी सयोगी जीवों में उपयोग होता ही है। किन्तु जिसके उपयोगात्मा होती है उसके योगात्मा होती भी है और नहीं भी होती । चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगी केवली तथा सिद्ध आत्माओं में उपयोगात्मा होते हुए भी योगात्मा नहीं है।
जिस जीव के योगात्मा होती है उसके ज्ञानात्मा की भजना है। मिथ्यादृष्टि जीवों में योगात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं