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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
इस तरह अनवस्था हो जाएगी। (५) सातबादी-- जो कहते हैं, संसार में सुख से रहना चाहिये। मुख ही से सुख की उत्पत्ति हो सकती है, तपस्या आदि दुःख से नहीं । जैसे सफेद तन्तुओं से बनाया गया कपड़ा ही सफेद हो सकता है, लाल तन्तुओं से बनाया हुआ नहीं। इसी तरह दुश्व से सुरव की उत्पत्ति नहीं हो सकती।
संयम और तप जो पारमार्थिक मुख के कारण हैं उनका निराकरण करने से ये भी अक्रियावादी हैं। ( ६ ) समुच्छेदवादी--यह भी बौद्धों का ही नाम है। वस्तु प्रत्येक क्षण में सर्वथा नष्ट होती रहती है, किसी अपेक्षा से नित्य नहीं है, यही समुच्छेदवाद है । उनका कहना है- वस्तु का लक्षण है किसी कार्य का करना । नित्य वस्तु से कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि दूसरे पदार्थ की उत्पत्ति होने से वह नित्य नहीं रह सकता। इसलिये वस्तु को क्षणिक ही मानना चाहिए। निरन्वयनाश मान लेने से आत्मा भी प्रतिक्षण बदलता रहेगा। इससे स्वर्गादि की प्राप्ति उसी आत्मा को न होगी जिसने संयम आदि का पालन किया है। इसलिये यह भी अक्रियावादी है। (७) नियतवादी- सांख्य और योगदर्शन वाले नियतवादी कहलाते हैं । ये सभी पदार्थों को नित्य मानते हैं। (८) परलोक नास्तित्ववादी- चार्वाक दर्शन परलोक वगैरह को नहीं मानता । आत्मा को भी पाँच भूत स्वरूप ही मानता है । इसके मत में संयम आदि की कोई आवश्यकता नहीं है।
इन सब का विशेष विस्तार इसके दूसरे भाग के बोल नं. ४६७ में छःदर्शन के प्रकरण में दिया गया है। (ठाणांग, सूत्र ६०७) ५६२- करण पाठ
जीव के वीर्य विशेष को करण कहते है। यहाँ करण से