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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
ये सभी अक्रियावादी हैं। ( ४ ) निर्मितवादी- जो लोग संसार को ईश्वर, ब्रह्म या पुरुष
आदि के द्वारा निर्मित मानते हैं । उनकाकहना है- पहले यह सब अन्धकारमय था। न इसे कोई जानता था, न इसका कुछ स्वरूप था। कल्पना और बुद्धि से परे था। मानो सब कुछ सोया हुआ था। वह एक अन्धकार का समुद्र सा था। न स्थावर थे न जंगम । न देवता थे न मनुष्य । न साँप थे न राक्षस । एक शून्य खड्ड सा था । कोई महाभूत न था । उस शून्य में अचिन्त्यस्वरूप विभु लेटे हुए तपस्या कर रहे थे । उसी समय उनकी नाभि से एक कमल निकला। वह दोपहर के सूर्य की तरह दीप्त, मनोहर तथा सोने के पराग वाला था। उस कमल से दण्ड और यज्ञोपवीत से युक्त भगवान् ब्रह्मा पैदा हुए। उन्होंने आठ जगन्माताओं की सृष्टि की। उनके नाम निम्न लिखित हैं-(१) देवों की मां अदिति (२) राक्षसों की दिति (३) मनुष्यों की मनु (४) विविध प्रकार के पक्षियों की विनता (५) साँपों की कद्र (६) नाग जाति वालों की मुलसा (७) चौपायों की सुरभि और (८) सब प्रकार के बीजों की इला । वे सिद्ध करते हैं- संसार किसी बुद्धिमान का बनाया हुआ है क्योंकि संस्थान अर्थात् विशेष आकार वाला है, जैसे घट। अनादि संसार को ईश्वरादिनिर्मित मानने से ये भी प्रक्रियावादी हैं।
ईश्वर को जगत्कर्ता मानने से सभी पदार्थ उसी के द्वारा बनाए जाएंगे तो कुम्भकार वगैरह व्यर्थ हो जाएंगे। कुलाल (कुम्हार)
आदि की तरह अगर ईश्वर भी बुद्धि की अपेक्षा रक्खेगा तो वह ईश्वर ही न रहेगा। ईश्वर शरीर रहित होने से भी क्रिया करने में असमर्थ है। अगर उसे शरीर वाला माना जाय तो उस के शरीर को बनाने वाला कोई दूसरा सशरीरीमानना पड़ेगा और