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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
· हो तो वह शीघ्र ही जल जायगी। (२) एक प्रश्न को हल करने - के लिए सामान्य व्यक्ति गुणा भाग की लम्बी रीति का आश्रय
लेता है और उसी प्रश्न को हल करने के लिए गणितशास्त्री संक्षिप्त रीति का उपयोग करता है। पर दोनों का उत्तर एक ही आता है । (३) एक धोया हुआ कपड़ा जल से भीगा ही इकट्ठा करके रखा जाय तो वह देर से सूखेगा और यदि उसीको
खूब निचोड़ कर धूप में फैला दिया जाय तो वह तत्काल सूख • जायगा । इन्हीं की तरह अपवर्तनीय आयु में आयुकर्म पूरा भोगा जाता है, परन्तु शीघ्रता के साथ ।
देवता, नारकी असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यश्च और .. मनुष्य, उत्तम पुरुष (तीर्थङ्कर चक्रवर्ती आदि) तथा चरम शरीरी
(उसी भव में मोक्ष जाने वाले) जीव अनपवर्तनीय आयु वाले
होते हैं और शेष दोनों प्रकार की आयु वाले होते हैं। ....... (तत्त्वार्थसूत्र अध्याय २ सूत्र ५२.) (ठा० २ उ० ३ सूत्र ८५की वृत्ति) .. (६)नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव नारक, तिर्यश्च आदि
नामों से सम्बोधित होता है अर्थात् अमुक नारक है, अमुक तियेच है, अमुक मनुष्य है, अमुक देव है, इस प्रकार कहा जाता है उसे नामकर्म कहते हैं। अथवा जो जीव को विचित्र पर्यायों में परिणत करता है या जो जीव को गत्यादि पर्यायों का अनुभव करने के लिये उन्मुख करता है वह नामकर्म है।
नामफर्म चितेरे के समान है। जैसे चित्रकार विविध वर्णों से अनेक प्रकार के सुन्दर असुन्दर रूप बनाता है उसी प्रकार नामकमे जीव को सुन्दर, असुन्दर, आदि अनेक रूप करता है। ___ नामकर्म के मूल भेद ४२ हैं- १४ पिण्ड प्रकृतियाँ, ८ प्रत्येक प्रकृतियाँ, त्रसदशक और स्थावरदशक । चौदह पिण्ड प्रकृतियाँ ये हैं- (१) गति (२) जाति (३) शरीर (४) अनोपान (५) बंधन