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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाल (२) शुद्धपृथ्वी- पर्वतादि के मध्य में होने वाली शुद्ध मिट्टी।
(३) मनःशिलापृथ्वी- लाल वर्ण की एक उपधातु जो दवा. इयों में काम आती है । इसे मेनसिल भी कहा जाता है।
(४) बालुकापृथ्वी- रजकण या बालू रेत । (५) शर्करापृथ्वी-कंकरीली जमीन। (६) खरपृथ्वी-पथरीली जमीन ।
(जीवाभिगम तीसरी प्रतिपत्ति सूत्र १०१) ४६६- बादर वनस्पतिकाय छः
स्थूल शरीर वाले वनस्पति काय के जीवों को बादर बनस्पति काय कहते हैं । इन के छः भेद हैं(१) अग्रबीज-जिस वनस्पति का अग्रभाग बीज रूप होता
है जैसे कोरएटक आदि । अथवा जिस वनस्पति का
बीज अग्रभाग पर होता है जैसे धान वगैरह । (२) मूलबीज- जिस वनस्पति का मूलभाग बीज का काम
देता है, जैसे कमल आदि। (३) पर्वबीज-- जिस वनस्पति का पर्वभाग (गांठ) वीज का
काम देता है, जैसे इक्षु (गन्ना) आदि । (४) स्कन्धबीज-जिस वनस्पति का स्कन्धभाग बीज का
काम देता है, जैसे शल्लकी वगैरह । (५) बीजरुह--बीज से उगने वाली वनस्पति बीजरुह कह
लाती है, जैसे शालि वगैरह। (६) सम्मूर्छिम- जिस वनस्पति का प्रसिद्ध कोई बीज नहीं
है और जो वर्षा आदि के समय यों ही उग जाती है, जैसे तृण वगैरह।
(दशवकालिक अध्ययन ४)