________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
wwwwwww
(६) त्रस काय में बेइन्द्रियों की सात लाख । तेइन्द्रिय की
आठ लाख । चौरिन्द्रिय की नौ लाख । पञ्चेन्द्रिय जलचरों की साढे बारह लाख । खेचर अर्थात् पत्तियों की बारह लाख । . हाथी घोड़े वगैरह चौपायों की दस लाख । उर अर्थात् छाती से चलने वाले साँप वगैरह की दस लाख । भुजा से चलने वाले नेवला चूहे आदि की नौ लाख । देवों की छब्बीस लाख । नारकी जीवों की पच्चीस लाख । मनुष्यों की बारह लाख । कुल मिलाकर एक करोड़ सतानवे लाख पचास हजार कुलकोटियाँ हैं।
(प्रवचनसारोद्धार १५० वाँ द्वार) ४६४-छः काय का अल्पबहुत्व
एक दूसरे की अपेक्षा क्या अधिक है और क्या कम है, इस बात के वर्णन को अल्पबहुत्व कहते हैं । छः काय के जीवों का अल्पबहुत्व नीचे लिखे अनुसार है(१) सब से थोड़े त्रस काय के जीव हैं। (२) इन से तेजस्काय के जीव असंख्यात गुणे अधिक हैं। (३) पृथ्वी काय के तेजस्काय से असंख्यात गुणे अधिक हैं। (४) अप्काय के पृथ्वीकाय से असंख्यात गुणे अधिक हैं। (५) वायुकाय के अप्काय से असंख्यात गुणे अधिक हैं। (६) वनस्पति काय के सब से अनन्त गुणे हैं।
(जीवाभिगम दूसरी प्रतिपत्ति सूत्र ६१) ४६५-पृथ्वी के भेद छः ___ काठिन्यादि गुणों वाले पदार्थ को पृथ्वी कहते हैं। इसके
छः भेद हैं(१) श्लक्ष्णपृथ्वी- पत्थर के चूरे सरीखी धरती।