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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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४६७ - क्षुद्रप्राणी छः
त्रस होने पर भी जो प्राणी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते, या जिनमें देव उत्पन्न नहीं होते उन्हें क्षुद्र प्रारणी कहते हैं । इनके छः भेद हैं—
( १ ) बेइन्द्रिय- स्पर्शन और रसना दो इन्द्रियों वाले जीव । (२) तेइन्द्रिय- स्पर्शन, रसना और घाण तीन इन्द्रियों वाले जीव ।
(३) चौरिन्द्रिय- स्पर्शन, रसना, घाण और चक्षु चार इन्द्रियों वाले जीव ।
( ४ ) सम्मूर्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च - पाँचों इन्द्रियों वाले बिना मन के असं तिर्यञ्च ।
(५) तेडका - अनि के जीव ।
(६) वायुकाय - हवा के जीव ।
नोटः- बिना दूसरे की सहायता के हलन चलन किया वाले होने से अति और वायु के जीव भी नस कहे जाते हैं ।
(ठाणांग ६ सूत्र ५१३)
४६८ - जीव के संस्थान ( संठाण) छः
शरीर के आकार को संस्थान कहते हैं। इसके छः भेद हैं(१) समचतुरस्र संस्थान - सम का अर्थ है समान, चतुः का
tart और a का अर्थ है कोण । पालथी मार कर बैठने पर जिस शरीर के चारों कोण समान हों अर्थात् आसन और कपाल का अन्तर, दोनों जानुओं का अन्तर, वाम स्कन्ध और दक्षिण जानु का अन्तर तथा दक्षिण स्कन्ध और वाम जानु का अन्तर समान हो उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं।
अथवा सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिस शरीर के सम्पूर्ण