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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला !'
अवयव ठीक प्रमाण वाले हों उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं। (२) न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान- वट वृक्ष को न्यग्रोध कहते हैं। जैसे वट वृक्ष ऊपर के भाग में फैला हुआ होता है और नीचे के भाग में संकुचित, उसी प्रकार जिस संस्थान में नाभि के ऊपर का भाग विस्तार वाला अर्थात् शरीरशास्त्र में बताए हुए प्रमाण वाला हो और नीचे का भाग हीन अवयव वाला हो उसे न्यग्रोध परिमंडल संस्थान कहते हैं। (३) सादि संस्थान- यहाँ सादि शब्द का अर्थ नाभि से नीचे का भाग है । जिस संस्थान में नाभि के नीचे का भाग पूर्ण और ऊपर का भाग हीन हो उसे सादि संस्थान कहते हैं।
कहीं कहीं सादि संस्थान के बदले साची संस्थान भी मिलता है । साची सेमल (शाल्मली) वृक्ष को कहते हैं। शाल्मली वत
का धड़ जैसा पुष्ट होता है वैसा ऊपर का भाग नहीं होता। " इसी प्रकार जिस शरीर में नाभि के नीचे का भाग परिपूर्ण होता है पर ऊपर का भाग हीन होता है वह साची संस्थान है। (४) कुब्ज संस्थान-जिस शरीर में हाथ पैर सिर गर्दन आदि अवयव ठीक हों पर छाती पेट पीठ आदि टेढे हों उसे कुज संस्थान कहते हैं। (५) वामन संस्थान-जिस शरीर में छाती पीठ पेट आदि अवयव पूर्ण हों पर हाथ पैर आदि अवयव छोटे हों उसे वामन संस्थान कहते हैं।
नोट-ठाणांग सूत्र, प्रवचनसारोद्धार और द्रव्यलोक प्रकाश में कुब्ज तथा वामन संस्थान के उ रोक्त लक्षण ही व्यत्यय (उलट) करके दिये हैं। . (६) हुंडक संस्थान-जिस शरीर के समस्त अवयव बेढब हों