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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(६) पूजासत्कार- जनता द्वारा अधिक आदर,सन्मान मिलना।
यही छः बातें आत्मार्थो अर्थात् कषाय रहित साधु के लिए शुभ होती हैं। वह इन्हें धर्म का प्रभाव समझ कर तपस्या आदि में अधिकाधिक प्रवृत्त होता है।
(ठाणांग ६ सूत्र ४६६) ४५९-अप्रशस्त वचन छः ____ बुरे वचनों को अप्रशस्त वचन कहते हैं। वे साधु साध्वियों को नहीं कल्पते । इनके छः भेद हैं(१) अलीकवचन- असत्य वचन कहना । (२) हीलितवचन- ईर्ष्या पूर्वक दूसरे को नीचा दिखाने वाले अवहेलना के वचन कहना। (३) खिसितवचन-दीक्षा से पहले की जाति या कर्म आदि को बार बार कह कर चिढ़ाना । (४) परुषवचन- कठोर वचन कहना। (५) गृहस्थवचन- गृहस्थों की तरह किसी को पिता,चाचा, मामा आदि कहना। (६)व्यवशमित-शान्त कलह को उभारने वाले वचन कहना।
(ठाणांग ६ सूत्र ५२७२प्रवचनसारोद्धार गाथा १२२१)(बृहत्कल्प उद्देशा ६) ४६०-झूठा कलङ्क लगाने वाले को प्रायश्चित्त
नीचे लिखी छः बातों में झूठा कलङ्क लगाने वाले को उतना ही प्रायश्चित्त आता है जितना उस दोष के वास्तविक सेवन करने पर आता है(१) हिंसा न करने पर भी किसी व्यक्ति पर हिंसा का दोष लगाना।